आखिर क्या बला है ग्रीन क्रैकर्स, क्या यह साधारण पटाखों से कम प्रदूषण करते हैं, जानिए सबकुछ

दीपावली का पर्व आ रहा है। इस बार सरकार ने पटाखों को बैन कर दिया है, सिर्फ ग्रीन पटाखों को ही बजाने की छूट दी गई है। अब लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर यह ग्रीन पटाखे हैं क्या? क्या ये पटाखे धुआं नहीं छोड़ते, या इन पटाखों में विस्फोटक पदार्थ नहीं होते, आखिर इनको बजाने से कैसे प्रदूषण रुकेगा? तो चलिए यह पूरी खबर जरूर पढ़ें, आपको आपके सवालों का जवाब मिल जाएगा। साथ ही खबर में आप यह भी जान पाएंगे कि आखिर पटाखों से रंग बिरंगी रोशनी कैसे निकलती है। पहले तो आपको बता दें कि अगर आप सोच रहे हैं कि ग्रीन पटाखे वातावरण फ्रेंडली हैं तो ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। ये पटाखे भी प्रदूषण करते हैं, धुआं छोड़ते हैं, दिखने में और चलने में ये बिल्कुल दूसरे पटाखों जैसे ही हैं, लेकिन इनमें आम पटाखो जैसा खतरनाक प्रदूषण या केमिकल नहीं होता। फतेहाबाद में बिक रहे पटाखों पर लिखा तो ग्रीन है, लेकिन अंदर क्या है राम जाने? जानकारों का कहना है कि सामान्य पटाखों की तरह यह भी कानफोडू हैं, हवा में भी प्रदूषण होगा। यानि ध्वनि और वायु प्रदूषण तो होगा ही, लेकिन नुकसानदायक कम होंगे।

ALSO READ  दिल की बात: समय पर सीपीआर दें तो बचाई जा सकती है मरीज की जान
नुकसानदायक तो है ही ना फिर ग्रीन क्रैकर्स क्यों कहते हैं

इन पटाखों के बजने से हवा में पाॢटकुलर मैटर यानि पीएम 30 से 40 प्रतिशत कमी आती है, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी कम होती है। तय मानकों पर पूरा होने पर इन पटाखों को ग्रीन क्रैकर्स कहा जाता है। सबसे पहले सीएसआईआर दिल्ली ने ग्रीन पटाखों का आइडिया दिया और तब से इन पटाखों का इस्तेमाल केवल और केवल हमारे ही देश में हो रहा है। दुनियाभर में अभी कहीं ओर ये पटाखे नहीं चल रहे। अब ध्यान रखें यदि आपको कोई चाइनीज पटाखे ग्रीन कहकर बेचे तो मत लें, क्योंकि वे पटाखे ग्रीन क्रैकर्स नहीं हैं। हमारे देश में दीपावली, दशहरा, विवाह शादि आदि पर पटाखे बजाकर खुशी मनाई जाती है, लेकिन हमेशा प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कोरोनाकाल के बाद से लगातार दीपावली पर पटाखों पर बैन लगता आ रहा है, जिससे पर्व भी फीके नजर आते हैं। इसलिए अब इन पटाखों का फार्मूला निकाला गया है।

सामान्य और ग्रीन क्रैकर्स में अंतर

जो आम तौर पर पटाखे हम बजाते रहे हैं, उनमें बेरियम नाइट्रेट होता है। यह इंसान की श्वास नली के जरिये शहर में पहुंच जाए तो यह जहर का काम करती है। इससे डायरिया, पेट दर्द, सांस लेने में परेशानी, दिल की धड़कन बढऩे जैसी समस्याएं हो जाती हैं। जबकि ग्रीन क्रैकर्स में बेरियम नाइट्रेट इस्तेमाल नहीं होता। इनमें पोटेशियम नाइट्रेट डाला जाता है। किसी भी केमिकल का नुकसान होता ही है, लेकिन इस केमिकल का नुकसान पहले वाले से कमतर होता है। नए पटाखों में पहले की तरह सल्फर और एल्युमीनियम पाऊडर भी प्रयोग होता है, लेकिन मात्रा कम होती है।  ध्वनि प्रदूषण की बात करें तो आम पटाखे 160 से 200 डेसिबल तक का शोर करते हैं, जबकि ग्रीन पटाखों में यह 100 से 130 के बीच रहता है।

ALSO READ  बंदर नहीं मछलियां हैं इंसानों की पूर्वज ! पढि़ए यह रिसर्च रिपोर्ट
पटाखों के कौन से केमिकल से क्या नुकसार

पटाखों में कई तरह के हानिकारक केमिकल होते हैं। जिनका सीधा-सीधा शरीर पर प्रभाव पड़ता है। इसमें सीसा होता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव होता है। कॉपर से श्वास नली में परेशानी होती है। ङ्क्षजक से उल्टी होती है। सोडियम से स्किन संबंधी दिक्कतें होती हैं, केडियम से एनीमिया और किडनी परेशानी हो सकती है।  मैग्नीशियम से मेटल फ्यूम फीवर होता है। नाइट्रेट से चिड़चिड़ापन हो सकता है। बेरियम नाइट्रेट के हानिकारक प्रभाव आपको पहले ही बता दिए हैं। वैसे सभी प्रकार के पटाखों से परेशानी हो सकती है। पटाखों से बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, गंभीर रूप से बीमार लोगों या अस्थमा पीडि़त लोगों को परेशानी हो सकती है। दिल के रोगियों को बेचैनी परेशानी हो सकती है। हमारे कान 60 डेसिबल की साऊंड नॉर्मल सुन सकते हैं। लेकिन पटाखों से 150 डेसिबल से अधिक आवाज निकलती है। जो बहरा बना सकती है। खासकर छोटे बच्चों के कान के परदे फट सकते हैं। रंग बिरंगी रोशनी से छोटी बच्चों की आंखें चौंधिया जाती हैं। जिससे आंखों पर प्रभाव पड़ता है।

ALSO READ  Corona Vaccine news : ब्रिटिस कंपनी ने भी माना, एस्ट्राजेनेका की CORONA वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा, इसी फार्मूले से तैयार की गई है कोविशील्ड की Vaccine, देश में 1.75 करोड़ डोज लगे
रंग बिरंगे कैसे जलते हैं पटाखे

आप भी यह देखकर अकसर हैरान होते होंगे कि पटाखों में ऐसा क्या होता है कि उनमें इस प्रकार रंगीन रोशनियां निकलती हैं। कोई पटाखा ऊपर जाकर लाल होता है तो कोई नीला, हरा, पीला। तो जानिए, पटाखों में शामिल कई प्रकार के मेटल से यह रंग निकलते हैं। मैग्नीशियम एल्युमीनियम, टाइटेनियम से सफेद रंग निकलता है। स्ट्रांशियम से लाल रंग निकलता है। कैल्शियम से संतरा रंग, सोडियम से पीला, बेरियम से हरा, कॉपर से नीला और स्ट्रांशियम, कैल्शियम से बैंगनी कलर निकलता है। तो यह सारी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, लगी हो तो इस पोस्ट को शेयर करते रहें।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *