Life Style

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वर्ष 2022 में 13 करोड़ से ज्यादा बच्चे पैदा हुए, 6.5 करोड़ से ज्यादा जानें गईं, जानिए ऐसे ही कई रिकार्डों के बारे में

वर्ष 2022 अब जाने को है और नया साल 2023 अपनी बाहें पसारे हमारा स्वागत कर रहा है। बीत रहे वर्ष 2022 के पहले दिन के बारे में सोचें तो ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात है। हर बार ऐसा ही लगता है। यह साल कई अच्छी और कुछ बुरी यादों को समेटे हुए है। इस वर्ष यह राहतभरी बात रही कि कोरोना रूपी महामारी ने 2022 में कम दर्द दिया है, हालांकि 2023 आने से पहले एक बार फिर कोरोना के काले बादल छाने लगे हैं। आज हम बात करेंगे 2022 के कुछ रिकॉर्डों के बारे में। (नोट डेटा worldometer.info से 23 दिसम्बर 2022 तक का है)

 

13 करोड़ से ज्यादा बच्चे पैदा हुए, 6.5 करोड़ से ज्यादा जानें गईं

इस वर्ष दुनियाभर में 13 करोड़ से ज्यादा बच्चे पैदा हुए, जबकि 6.5 करोड़ लोग अलविदा भी हो गए। इस वर्ष 13 करोड़ 8 लाख 61 हजार 627 बच्चे पैदा हुए। नए बच्चे सबसे ज्यादा ढाई करोड़ केवल भारत में ही पैदा हुए। देश की जनसंख्या बेहद तेजी से बढ़ रही है और 2023 में ही भारत चीन को पीछे छोड़ देने वाला है।

दुनियाभर में 32 लाख करोड़ का अवैध नशा बिका। दुनिया के सभी शेयर मार्केट का संयुक्त मार्केट कैप 10.17 हजार लाख करोड़ रुपये है। इस वर्ष 129 करोड़ टन अनाज बर्बाद हुआ। जिनमें सबसे ज्यादा चीन में 9 करोड़ टन अनाज बर्बाद हुआ। भारत दूसरे नंबर पर है। यहां 6 करोड़ टन अनाज की बर्बादी हुई।

कार्बन बढ़ाता खतरा

दुनिया में प्रदूषण अब सबसे ज्यादा बड़ा मुद्दा बन गया है। दुनियाभर में इस वर्ष 35 हजार करोड़ टन से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हुआ। चीन ने सबसे ज्यादा 1 हजार टन कार्बन पैदा किया। अमेरिका ने 541 टन कार्बन के साथ दूसरे नंबर जबकि भारत 265 टन कार्बन उत्सर्जन के साथ तीसरे नंबर पर रहा।

इतना पानी पी लिया गया

दुनिया की बढ़ती आबादी के साथ पानी की खपत भी बढ़ती जा रही है। इस वर्ष 4 हजार लाख करोड़ लीटर पानी पीने व दूसरे घरेलू कार्यों में प्रयोग हुआ। अब इस संख्या को लिखने बैठें तो 4 के बाद हमें 15 बार शून्य लगाने पड़ेंगे। चीन में सबसे ज्यादा 362 लाख करोड़ गैलेन जबकि अमेरिका में 216 लाख करोड़ गैलेन व भारत में 40 लाख करोड़ गैलेन पानी इस्तेमाल हुआ।

8 करोड़ से ज्यादा बनीं कारें

अब जब जनसंख्या बढ़ रही है तो स्वाभाविक है कि कारों की डिमांड बढ़ी। दुनिया में इस जाते वर्ष में 8 करोड़ 20 लाख 45 हजार 783 कारें बनी हैं। इनमें सबसे ज्यादा 1 करोड़ कारें जापानी कंपनी टोयोटा ने बनाईं। जबकि जर्मन कार कंपनी वॉक्स वैगन ने दूसरे नंबर पर 82 लाख कारें बनाईं। भारत की सबसे ज्यादा कार बनाने वाली कंपनी मारूति सुजूकी ने इस वर्ष 16 कारें बनाईं और बिकी भी। लोग भी बेधड़क मारुति की कारों को खरीद रहे हैं, बिना इस बात की फिक्र किए कि मारूति की कारें क्रैश टेस्ट में शर्मनाक प्रदर्शन कर रही हैं।

 

15 करोड़ से ज्यादा साइकिलें बनीं

दुनियाभर में 15 करोड़ 17 लाख 1519 साइकिलें वर्ष 2022 में बनी हैं। भारत में सबसे ज्यादा हीरो कंपनी की साइकिलें बनती हैं, हर साल यह 40 प्रतिशत साइकिलें यानि 50 लाख साइकिल बनाती है। वहीं दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिलें बनाने व बेचने वाली कंपनी जायंट ने हर वर्ष 70 लाख साइकिलें बनाती है।

इतने जंगलों का हुआ विनाश

अब जब जनसंख्या बढ़ रही है तो स्वाभाविक है कि इंसान अपने पैर पसारने के लिए जंगलों की बलि ले रहा होगा। इस वर्ष 50 लाख 78 हजार हेक्टेयर वनों को काटा गया है। सबसे ज्यादा ब्राजील के अमेजन जंगलों में कटाई हुई। यहां 48 लाख एकड़ के करीब वन काट दिए गए। वहीं अचंभित करने वाला आंकड़ा भारत का है। यहां वर्ष 2021 की तुलना में 2022 में जंगलों का एरिया 1540 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है।

इतनी छपी किताबें

हालांकि अब दुनिया में ऑनलाइन ही सबकुछ पढ़ लिया जाता है, लेकिन फिर भी किताबें अपनी जगह बनाए हुए हैं। इस वर्ष 27 लाख 283 किताबें प्रिंट हुईं। आरईएलएक्स ग्रुप ने हर वर्ष सवा 4 लाख किताबें छाप रहा है। सबसे ज्यादा किताबें छापने के मामले में भारत 6वें स्थान पर है।

 

इतने कंम्प्यूटर या लैपटॉप बने

इस वर्ष दुनिया में 23 करोड़ 29 लाख 16 हजार 750 कम्प्यूटर बने। लेनेवो कंपनी हर वर्ष 20 लाख से ज्यादा कम्प्यूटर सिस्टम बनाती है। दूसरे नंबर पर एचपी हर वर्ष 18 लाख से ज्यादा सिस्टम बनाती है।

इंटरनेट प्रयोग करने वाले हम 547 करोड़

आबादी के साथ-साथ अब इंटरनेट का प्रयोग बेतहाशा बढ़ गया है। यदि आज से 8-10 साल पहले की तुलना आज से करें तो आज हर काम नेट पर हो रहा है। बिना इंटरनेट जीने बारे सोचा नहीं जा सकता। इस वर्ष इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़कर 547 करोड़ हो गई है। यहां भी चीन नंबर एक पर है। जहां 102 करोड़ लोग इंटरनेट चलाते हैं। भारत में 65 करोड़ आबादी नेट चलाती है।

डिजिटल दुनिया में ट्रांजेक्शन भी डिजिटल

वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार दुनिया में 704 लाख करोड़ का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ। पहले नंबर पर भारत है। यहां 7 हजार करोड़ से ज्यादा का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ है। दूसरे नंबर पर चीन में 2 हजार करोड़ से ज्यादा का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ। यहां काबिलेगौर बात यह है कि दुनिया में यह प्रचलन बहुत पहले से है, जबकि भारत में 2016 में नोटबंदी के बाद से ही डिजिटल ट्रांजेक्शन का प्रचलन बढ़ा और अब 2022 में भारत के आसपास भी कोई देश इस मामले में नहीं रहा।

 

खत्म होता कोयला भंडार

जैसे जैसे फैक्ट्री बढ़ रही हैं, कोयला भी खत्म होता जा रहा है। दुनिया में अब 1 लाख 47 हजार 896 दिनों का कोयला बचा है। हालांकि यह अनुमान भर है। इस साल चीन ने सबसे ज्यादा 394 टन से ज्यादा कोयला निकला। जबकि भारत ने दूसरे स्थान पर रहते हुए 76 टन से ज्यादा कोयला निकाला।

इस साल साढ़े 6 करोड़ से ज्यादा लोग मरे

इस वर्ष 6 करोड़ 55 लाख 29 हजार 582 लोग मरे, इनमें सबसे ज्यादा डेथ रेट सॢबया का है। यहां हर 1000 लोगों पर 16 लोगों की मौत हुई। भारत 31वें नंबर पर है। जहां हर एक हजार पर 10 लोगों की मौत हो गई। इस वर्ष कैंसर से 80 लाख 22 हजार 729 लोगों की जान गई। जिनमें मंगोलिया में सबसे ज्यादा एक लाख लोगों के आंकड़ें से 175 लोगों की रेशो में मौत हुई। भारत में यह रेशो 62 का है।

10 लाख से ज्यादा आत्महत्याएं

दुनिया में इस वर्ष 10 लाख 47 हजार 517 लोग आत्महत्याएं कर गए। सबसे ज्यादा सुसाइड डेथ रेट साऊथ कोरिया का है। यहां एक लाख लोगों पर 26 ने सुसाइड किया। भारत में यह रेशो 12 है। देश में एक लाख 64 हजार लोग सुसाइड कर गए।

मलेरिया से गई पौने 4 लाख मौतें

मलेरिया से सबसे ज्यादा नाइजीरिया में लोग मरते हैंं। जहां 31 प्रतिशत लोगों की जान जाती है। पूरी दुनिया में 3 लाख 85 हजार 231 लोगों की जान गई। इनमें 51 प्रतिशत केवल चार अफ्रीकी देश नाइजीरिया, कांगो, तंजानिया और नाइजर में मामले सामने आते हैं। भारत में 75 लोगों की मलेरिया से इस वर्ष मौत हुई।

48 लाख से ज्यादा जानें स्मोङ्क्षकग से गई

हम सब जानते हैं कि स्मोकिंग जानलेवा होती हैं, लेकिन फिर भी लोग स्मोकिंग खूब करते हैं, क्योंकि इससे जान जाने के जोखिम की रफ्तार धीमी होती है। यदि आंकड़ें देखें तो स्मोकिंग से इस बार 48 लाख 83 हजार 558 लोगों की जान गई। ग्रीन लैंड में सबसे ज्यादा जानें जाती हैं, जहां कुल मौतों में 26 प्रतिशत मामलों में स्मोकिंग जिम्मेदार होती है। जबकि भारत में आए साल साढ़े 3 लाख से ज्यादा की जान जाती हैं। अमेरिका में यह आंकड़ा बढ़कर 4 लाख 80 हजार हो जाती है।

सड़क हादसे लील जाते 13 लाख से ज्यादा जानें

दुनिया में फर्राटे भरने वाले वाहन अब पसंदीदा हैं, इससे हादसे भी बढ़ रहे हैं। इस वर्ष 13 लाख 18 हजार 714 लोगों की जान सड़क हादसों में गई। भारत में प्रति एक लाख में से 13 मौत सड़क हादसों में होती है। जबकि डोमिनिक रिपब्लिक में सबसे ज्यादा एक लाख पर 67 लोगों की जानें सड़क हादसे ले जाते हैं। पिछले 10 सालों में भारत में 14 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हो चुकी है।

दुनिया में 800 करोड़वें बच्चे का जन्म, जानिये कितनी तेजी बढ़ रही आबादी

दुनिया की आबादी आज मंगलवार को 800 करोड हो गई है। जनसंख्या पर अपनी रिपोर्ट रखने वाली एक वेबसाइट के मुताबिक आज दोपहर करीब 1:30 पर दुनिया के 800 करोड़वें बच्चे ने जन्म ले लिया। जिसके बाद दुनिया की आबादी 8 अरब यानी 800 करोड हो गई। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भी यह अंदाजा लगाया गया था कि 2022 में 15 नवंबर तक दुनिया की आबादी 800 करोड़ पार हो जाएगी।

1804 में 1 अरब

एक अंदाजे के अनुसार पहली ईस्वी में दुनिया की आबादी 20 करोड थी। और इसे एक अरब तक पहुंचने तक करीब 1800 साल लगे और 1804 में दुनिया की आबादी 1 अरब हुई। अब एक अरब से दुनिया की आबादी को 8 अरब तक पहुंचने में 218 साल लगे हैं। 1804 से 2022 तक दुनिया की आबादी 8 करोड़ तक पहुंच गई है।

1930 तक 2 अरब

इस दौरान की बात करें तो 1930 तक दुनिया की आबादी 2 अरब थी। 1930 से 2022 तक ही 6 अरब आबादी बढ़ी है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके बाद से जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ती गई। 1960 तक यह 3 अरब हो गई फिर 1974 में यह 4 अरब हो गई। जबकि 1987 तक आबादी 5 अरब तक पहुंची। 1998 तक छह अरब फिर 2010 में यह 7 अरब और अब 2022 में यह 8 अरब हो गई है।

2050 तक दुनिया की आधी आबादी 8 देशों में

एक अनुमान के अनुसार यदि रफ्तार इसी तरह से चलती रही तो 2030 तक दुनिया की आबादी बढ़कर 850 करोड हो जाएगी। हालांकि यह दर 1950 के बाद की दर से 1 फ़ीसदी कम है। एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया की पूरी जनसंख्या का आधा हिस्सा केवल 8 देशों में होगा। इनमें भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, मिस्र, कांगो, नाइजीरिया, तंजानिया और इथोपिया शामिल है। फिलहाल जनसंख्या के मामले में चीन 1.426 अरब के साथ पहले नंबर पर है जबकि भारत 1.412 अरब के साथ दूसरे नंबर पर है।

8 नवंबर को चंद्रग्रहण, पूर्वी राज्यों में पूर्ण, शेष भारत में आंशिक रूप से दिखेगा

दीपावली के अगले दिन लगे सूर्य ग्रहण के बाद अब 8 नवंबर को साल का आखिरी चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। देश के पूर्वी क्षेत्रों में चंद्रग्रहण का नजारा दिखेगा, जबकि अन्य जगहों पर आंशिक रूप ही दिखेगा। यह चंद्रग्रहण देश में सबसे पहले शाम 4 बजकर 23 मिनट पर पूर्वी भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में दिखेगा। हालांकि ज्योतिषियों का कहना है कि ग्रहण की शुरूआत दोपहर 2 बज कर 38 मिनट पर ही हो जाएगी। चंद्रग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले ही शुरू हो जाएगा। चंद्रोदय के साथ ही अरुणचाल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि सभी पूर्वी राज्यों में चंद्रग्रहण नजर आएगा, जबकि दूसरे क्षेत्रों में आंशिक चंद्रग्रहण दिखेगा। शाम 6 बज कर 19 मिनट पर चंद्र ग्रहण खत्म होगा और इसका सूतक भी खत्म हो जाएगा। इसके बाद मांघ चंद्रग्रहण होगा, जो 7 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। हालांकि मांघ चंद्र्रग्रहण की धार्मिक मान्यता नहीं है।

एक माह में दो-दो ग्रहण

25 अक्टूबर को हुआ सूर्य ग्रहण भी कार्तिक माह में ही था, जबकि चंदग्रहण भी कार्तिक माह में ही पड़ रहा है। सूर्यग्रहण अमावस्या पर था और चंद्रग्रहण अब पूर्णिमा के दिन है। ज्योतिष विद्या केे अनुसार एक माह में जब दो-दो ग्रहण हों तो यह प्राकृतिक आपदाओं के योग बनते हैं।

अगले साल 2 चंद्र ग्रहण

यह साल का आखिरी चंद्रग्रहण होने वाला है। अगले साल अब 5 मई को मांघ चंद्रग्रहण होगा जबकि 28 अक्टूबर को आंशिक चंदग्रहण होगा। ये दोनों ग्रहण अगले साल भारत में दिखेंगे। मांघ चंद्रग्रहण में सूतक नहीं लगता।

पूर्ण चंद्रग्रहण

जब चांद और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है तो तीनों ग्रहण एक लाइन में होते हैं और तब पृथ्वी की छाया चंद्र पर पडऩे लगती है और चंद्र लाल दिखने लगता है। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है।

मांघ चंद्र ग्रहण

इस ग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता। इस ग्रहण में सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन तीनों ग्रहण सीधी रेखा में नहीं होते और पृथ्वी की हलकी सी छाया चंद्र पर पड़ती है, जो चंद्र पर धूल की तरह दिखती है।

आंशिक चंद्र ग्रहण

जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन तीनों एक लाइन में नहीं होते, तब चंद्र के कुछ हिस्से पर ही पृथ्वी की छाया पड़ती है और इसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहते हैं।

शाम 5 बजे बाद ही कर पाएंगे लक्ष्मी पूजा जानिए पूरी विधि और पूजन के मुहूर्त

आज दीपावली है और इस बार जो संयोग बन रहे हैं, उससे यह दीवाली बेहद शुभकारी साबित होने वाली है। कार्तिक माह की अमावस्या भी आज शाम से शुरू होगी, जो कल शाम 5 बजे तक जारी रहेगी। इसलिए आज दिन में दीपावली की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त नहीं है। शाम 5 बजे बाद ही दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है। कल 25 तारीख को सूर्य ग्रहण भी है। आज शाम और रात को मुहूर्त रहेंगे। आपको बता दें कि करीब 2 हजार वर्ष बाद इस बार दीपावली पर बुध, गुरू, शुक्र और शनि अपनी ही राशि में रहेंगे। जिसकारण मां लक्ष्मी की पूजा के समय पांच राजयोग बन रहे हैं, जो सुख शांति और वृद्धि का संकेत दे रहे हैं। ज्योतिषियों ने इस दिन पूजा पाठ के लिए विधियां बताई हैं।

दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा ऐसे करें: लौटे में गंगा जल जरूर लें। कुशा और फूल से खुद पर और अन्य परिवारजनों पर जल छिड़कें। फिर सभी को तिलक करें। इसके बाद प्रथम गणेश जी, फिर क्लश को तिलक करें और फिर सभी देवी-देवताओं व बाद में मां लक्ष्मी की पूजा करें।
बहीखाता पूजा: पूजा सामग्री व फूल लेकर मां सरस्वती का ध्यान करें, फिर ऊँ सरस्वत्यै नम: का जाप करें। मंत्र जाप करते हुए ही बहीखाता पर पूजा करें।

मां लक्ष्मी की इन तस्वीरों की ही करें पूजा

कार्तिक अमावस्या पर महालक्ष्मी की मूर्ति या फोटो की पूजा करने की परंपरा है। बाजार में लक्ष्मी जी की अलग-अलग फोटो मिलती हैं। पूजा के लिए देवी की कैसी फोटो सबसे अच्छी होती है, इस बारे में ज्योतिषियों का जो मानना है, वह पढि़ए। पूजा के लिए ऐसी तस्वीर खरीदें, जिसमें लक्ष्मी मां कमल के आसन पर विराजमान हों, उनके साथ एरावत हाथी भी हो तो पूजा के लिए फोटो सबसे उत्तम रहती है। तस्वीर में माता के दोनों ओर हाथी बहते पानी में खड़े हैं, सिक्कों की बारिश कर रहे हैं। सूंड में सोने का कलश लिए हुए हैं। यह फोटो भी उत्तम है, जिसमें लक्ष्मी जी और भगवान विष्णु जी गरुड़ पर विराजित हैं और मां लक्ष्मी विष्णु जी के पैरों की तरफ बैठी हो। तीसरी फोटो यह हो सकती है, जिसमें लक्ष्मी माता के साथ गणेश जी और मां सरस्वती भी हों, मां लक्ष्मी दोनों हाथों से धन बरसा रही हों। मां लक्ष्मी की ऐसी तस्वीरों की पूजा से बचना चाहिए, जिनमें उनके पैर दिख रहे हों या वे खड़ी मुद्रा में हों, उल्लू पर सवार मां की पूजा नहीं करनी चाहिए, कभी भी अकेली मां की फोटो की पूजा न करें।

आखिर क्या बला है ग्रीन क्रैकर्स, क्या यह साधारण पटाखों से कम प्रदूषण करते हैं, जानिए सबकुछ

दीपावली का पर्व आ रहा है। इस बार सरकार ने पटाखों को बैन कर दिया है, सिर्फ ग्रीन पटाखों को ही बजाने की छूट दी गई है। अब लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर यह ग्रीन पटाखे हैं क्या? क्या ये पटाखे धुआं नहीं छोड़ते, या इन पटाखों में विस्फोटक पदार्थ नहीं होते, आखिर इनको बजाने से कैसे प्रदूषण रुकेगा? तो चलिए यह पूरी खबर जरूर पढ़ें, आपको आपके सवालों का जवाब मिल जाएगा। साथ ही खबर में आप यह भी जान पाएंगे कि आखिर पटाखों से रंग बिरंगी रोशनी कैसे निकलती है। पहले तो आपको बता दें कि अगर आप सोच रहे हैं कि ग्रीन पटाखे वातावरण फ्रेंडली हैं तो ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। ये पटाखे भी प्रदूषण करते हैं, धुआं छोड़ते हैं, दिखने में और चलने में ये बिल्कुल दूसरे पटाखों जैसे ही हैं, लेकिन इनमें आम पटाखो जैसा खतरनाक प्रदूषण या केमिकल नहीं होता। फतेहाबाद में बिक रहे पटाखों पर लिखा तो ग्रीन है, लेकिन अंदर क्या है राम जाने? जानकारों का कहना है कि सामान्य पटाखों की तरह यह भी कानफोडू हैं, हवा में भी प्रदूषण होगा। यानि ध्वनि और वायु प्रदूषण तो होगा ही, लेकिन नुकसानदायक कम होंगे।

नुकसानदायक तो है ही ना फिर ग्रीन क्रैकर्स क्यों कहते हैं

इन पटाखों के बजने से हवा में पाॢटकुलर मैटर यानि पीएम 30 से 40 प्रतिशत कमी आती है, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी कम होती है। तय मानकों पर पूरा होने पर इन पटाखों को ग्रीन क्रैकर्स कहा जाता है। सबसे पहले सीएसआईआर दिल्ली ने ग्रीन पटाखों का आइडिया दिया और तब से इन पटाखों का इस्तेमाल केवल और केवल हमारे ही देश में हो रहा है। दुनियाभर में अभी कहीं ओर ये पटाखे नहीं चल रहे। अब ध्यान रखें यदि आपको कोई चाइनीज पटाखे ग्रीन कहकर बेचे तो मत लें, क्योंकि वे पटाखे ग्रीन क्रैकर्स नहीं हैं। हमारे देश में दीपावली, दशहरा, विवाह शादि आदि पर पटाखे बजाकर खुशी मनाई जाती है, लेकिन हमेशा प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कोरोनाकाल के बाद से लगातार दीपावली पर पटाखों पर बैन लगता आ रहा है, जिससे पर्व भी फीके नजर आते हैं। इसलिए अब इन पटाखों का फार्मूला निकाला गया है।

सामान्य और ग्रीन क्रैकर्स में अंतर

जो आम तौर पर पटाखे हम बजाते रहे हैं, उनमें बेरियम नाइट्रेट होता है। यह इंसान की श्वास नली के जरिये शहर में पहुंच जाए तो यह जहर का काम करती है। इससे डायरिया, पेट दर्द, सांस लेने में परेशानी, दिल की धड़कन बढऩे जैसी समस्याएं हो जाती हैं। जबकि ग्रीन क्रैकर्स में बेरियम नाइट्रेट इस्तेमाल नहीं होता। इनमें पोटेशियम नाइट्रेट डाला जाता है। किसी भी केमिकल का नुकसान होता ही है, लेकिन इस केमिकल का नुकसान पहले वाले से कमतर होता है। नए पटाखों में पहले की तरह सल्फर और एल्युमीनियम पाऊडर भी प्रयोग होता है, लेकिन मात्रा कम होती है।  ध्वनि प्रदूषण की बात करें तो आम पटाखे 160 से 200 डेसिबल तक का शोर करते हैं, जबकि ग्रीन पटाखों में यह 100 से 130 के बीच रहता है।

पटाखों के कौन से केमिकल से क्या नुकसार

पटाखों में कई तरह के हानिकारक केमिकल होते हैं। जिनका सीधा-सीधा शरीर पर प्रभाव पड़ता है। इसमें सीसा होता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव होता है। कॉपर से श्वास नली में परेशानी होती है। ङ्क्षजक से उल्टी होती है। सोडियम से स्किन संबंधी दिक्कतें होती हैं, केडियम से एनीमिया और किडनी परेशानी हो सकती है।  मैग्नीशियम से मेटल फ्यूम फीवर होता है। नाइट्रेट से चिड़चिड़ापन हो सकता है। बेरियम नाइट्रेट के हानिकारक प्रभाव आपको पहले ही बता दिए हैं। वैसे सभी प्रकार के पटाखों से परेशानी हो सकती है। पटाखों से बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, गंभीर रूप से बीमार लोगों या अस्थमा पीडि़त लोगों को परेशानी हो सकती है। दिल के रोगियों को बेचैनी परेशानी हो सकती है। हमारे कान 60 डेसिबल की साऊंड नॉर्मल सुन सकते हैं। लेकिन पटाखों से 150 डेसिबल से अधिक आवाज निकलती है। जो बहरा बना सकती है। खासकर छोटे बच्चों के कान के परदे फट सकते हैं। रंग बिरंगी रोशनी से छोटी बच्चों की आंखें चौंधिया जाती हैं। जिससे आंखों पर प्रभाव पड़ता है।

रंग बिरंगे कैसे जलते हैं पटाखे

आप भी यह देखकर अकसर हैरान होते होंगे कि पटाखों में ऐसा क्या होता है कि उनमें इस प्रकार रंगीन रोशनियां निकलती हैं। कोई पटाखा ऊपर जाकर लाल होता है तो कोई नीला, हरा, पीला। तो जानिए, पटाखों में शामिल कई प्रकार के मेटल से यह रंग निकलते हैं। मैग्नीशियम एल्युमीनियम, टाइटेनियम से सफेद रंग निकलता है। स्ट्रांशियम से लाल रंग निकलता है। कैल्शियम से संतरा रंग, सोडियम से पीला, बेरियम से हरा, कॉपर से नीला और स्ट्रांशियम, कैल्शियम से बैंगनी कलर निकलता है। तो यह सारी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, लगी हो तो इस पोस्ट को शेयर करते रहें।

दीवाली से अगले ही दिन लगेगा इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण

इस वर्ष साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर को होगा। धर्म के नजरिये से यह ग्रहण खास रहने वाला है। दीपावली के अगले ही दिन यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा, सूर्य ग्रहण के कारण गोर्वधन पूजा अब एक दिन के लिए टल गई है। देश के कई जगहों पर यह ग्रहण देखने को मिलेगा। इस साल का यह दूसरा सूर्य ग्रहण है, पिछला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को था, जो भारत में नहीं देखा गया था। यह ग्रहण उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों यानि हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल सहित सभी उत्तरी राज्यों में बेहतर ढंग से दिखेगा, बाकी जगहों पर सूर्य अस्त होने के चलते यह नहीं दिखेगा। जबकि दुनियाभर के कई अन्य देशों में यह दिखेगा। पूर्वी और मध्य प्रदेश से आगे के दक्षिणी इलाकों में यह ग्रहण नहीं दिखेगा।

 

ग्रहण शाम साढ़े 4 बजे चरम पर होगा। 25 तारीख को इस दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी सीधी रेखा में रहेंगे। जिस कारण चंद्रमा कुछ देर के लिए आंशिक रूप से सूर्य को ढक लेगा और ग्रहण दिखेगा। देश में करीब-करीब आधा हिस्सा सूर्य का ढका दिखेगा। नई दिल्ली के समयानुसार शाम करीब 4 बजकर 29 मिनट पर ग्रहण शुरू होकर सूर्य अस्त के साथ ही ग्रहण 6 बजकर 9 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।

इस बार दीपावली 24 तारीख को है और ग्रहण के कारण गोवर्धन पूजन 25 की बजाए अब 26 तारीख को होगी और भाई दूज 27 को मनाई जााएगी। धनतेरस 22 अक्टूबर को होगी। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो 25 तारीख को शाम साढ़े 4 बजे लगने वाले ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले यानि सुबह 4 बजे ही शुरू हो जाएगा। यानि दीपावली की रात के बाद से ही ग्रहण का सूतक शुरू हो जाएगा। अत: धर्म की दृष्टि से ग्रहण को मानी जाने वाली सभी सावधानियां इस दिन आप पूरी कर सकते हैं।

अलर्ट: कहीं बहरे न हो जाएं बच्चे, खुद पर भी लागू करें यह सख्ती

भागदौड़ भरी जिंदगी में आजकल हर कोई अपने सेहत के प्रति बेहद लापरवाह नजर आते हैं। टेक्नोलॉजी इतनी प्रभावशाली हो गई है कि हम एक तरह से उसके आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं। बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण लोगों खासकर बच्चों के आंखों पर चश्मे चढ़ गए हैं तो वहीं अब ज्यादा हेडफोन और इयरफोन का इस्तेमाल किए जाने के कारण बहरेपन की समस्याएं भी बढ़ने लगी हैं। एक रिसर्च के अनुसार पिछली पीढ़ी की तुलना में इस पीढ़ी ने बहरापन ज्यादा तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसका सीधा-सीधा कारण ईयर फोन या हेडफोन का इस्तेमाल माना जा रहा है क्योंकि अधिकतर लोग अपने काम के दौरान एकाग्रता के लिए हेडफोन या ईयर फोन इस्तेमाल करते देखे जाते हैं तो वही बच्चे भी अपनी पढ़ाई के लिए या फिर गेमिंग के लिए हेडफोन लगाते हैं।

 

हेडफोन में आवाज तेज होने के कारण इसका सीधा सीधा प्रभाव हमारे कानों पर पड़ता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हेडफोंस के दौरान आवाज एक नियमित स्तर पर हो तो कुछ हद तक इससे बचा जा सकता है। आवाज का स्तर कितना हो यह जानने के लिए एक फार्मूला भी विशेषज्ञ बताते हैं। उनका कहना है कि बच्चा या कोई भी हेडफोन यूज करने वाले को लगभग एक मीटर की दूरी पर बैठाएं और उनसे बात करें यदि वह ढंग से सुन पा रहे हैं तो आवाज का लेवल सही है, अगर उन्हें सुनने में परेशानी है तो समझे की आवाज का लेवल ज्यादा है उसे कम करने की जरूरत है।

 

अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ ने वर्ष 1998 में हेडफोन सेफ्टी सीमा निर्धारित की थी। इसके अनुसार 85 डेसीबल से अधिक ऊंची आवाज पर 8 घंटे से ज्यादा हेडफोन या ईयर फोन इस्तेमाल करना सेहत के लिए खतरनाक माना गया और यदि 108 डेसीबल की आवाज 3 मिनट से ज्यादा सुनी जाए तो यह बेहद खतरनाक होता है।

 

आपको बता दें कि रोजाना घंटों तक कानों में ईयर फोन ठूसे रहने या सिर पर हेडफोन लगाकर गाने या अन्य कोई भी सामग्री सुनने पर सिर्फ हमारी सुनने की क्षमता पर ही असर नहीं होता बल्कि इससे चक्कर आने, कान में मोम जैसा पदार्थ जमने, संक्रमण होने, और कानों में तेज आवाज की परमानेंट सेंसटिविटी बन जाने की दिक्कतें भी आ सकती हैं।

 

इसलिए जितना महत्वपूर्ण स्क्रीन टाइम कम करके आंखों को बचाना है उतना ही महत्वपूर्ण कम से कम ईयर फोन और हेडफोन का इस्तेमाल कर अपने कानों को बचाना भी आज के समय में जरूरी हो गया है।

ईरान से भारत पहुंचा और आज हर घर की थाली की शान है समोसा

घर में कोई मेहमान आए और समोसे न मंगवाए जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। देशभर में समोसा हमारी मेहमान नवाजी की थाली की शान होता है। हर छोटी मोटी पार्टी में भी कोल्ड ड्रिंक्स के साथ समोसा परोसा जाता है, क्योंकि समोसा पार्टी बजट में भी हो जाती है। कभी बरसात आ जाए तो हमारे जेहन में पकौड़े, जलेबी या फिर समोसे ही आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि समोसे को लेकर जो दावा किया जाता है, उसके अनुसार समोसा भारतीय खाने की परंपरा में शामिल ही नहीं था। ईरान से यह समोसा भारत आया। 5 सितंबर को समोसा डे है, क्योंकि 2013 में ब्रिटिश काऊंसिल ने समोसे को दुनिया का पसंदीदा स्नैक्स मानकर 5 सितंबर को समोसा दिवस मनाने की घोषणा की। आज जानते हैं चटपटे समोसे के इतिहास के बारे में…

हर दिन समोसे की लागत

भारत में चटपटे व मसालेदार समोसे बड़े चाव से खाया जाता है। फास्टफूड से बेहतर माने जाने वाले समोसे को लगभग 6 करोड़ लोग हर रोज खाते हैं। स्विगी के आंकड़ों पर गौर करें तो 1 मिनट में 115 ऑर्डर रोज मिलते हैं। 2021 में 50 लाख ऑर्डर समोसे हुए थे। यह मात्र एक कंपनी का ही डेटा है। अन्य कंपनियां का डेटा उपलब्ध नहीं है। और लोग खुद मार्केट में जाकर समोसा खरीदते या खाते हैं, वो अलग है। उनका आंकड़ा ऑनलाइन डिलवरी से कहीं ज्यादा हो सकता है। देशभर में समोसे का सालाना 42 लाख करोड़ रुपये का बिजनेस होता है, क्योंकि स्नैक्स के तौर पर समोसे की बहुत डिमांड है।

भारत के हर कोने में अलग-अलग नाम

समोसे का नाम दुनियाभर के देशों में अलग-अलग है, भारत में ही कई नामों से समोसा जाना जाता है। उत्तर भारतीय राज्यों में समोसा को समोसा ही बोला जाता है, जबकि तमिलनाडू में इसे सोमासी कहा जाता है, हैदराबाद में लुखमी, तो ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तथा आसपास राज्यों में इसे सिंघाड़ा कहा जाता है, क्योंकि यह सिंघाड़े जैसी तिकोनी शेप का होता है। दुनिया की बात करें तो बांग्लादेश में शिंगारा, इथोपिया, तजाकिस्तान में समबूसा, नेपाल में सिंगास, पाकिस्तान में समोसा, बर्मा में समूजा, इंडोनेशिया में समोसा, सोमालिया में समबूस, दक्षिण अफ्रीका में समूंसाज, पुर्तगाल में चालूवास कहते हैं।

वेज और नॉनवेज दोनों प्रकार के होते हैं समोसे

वैसे तो हमारे देश में वेज समोसे का ही प्रचलन है, लेकिन बहुत से इलाकों में नॉनवेज समोसे भी होते हैं, जिनमें आलू की जगह भुने हुए चिकन, मटन या अंडा आदि की फिलिंग की जाती है। अगर दुनिया की बात करें तो इरान, थाईलंैड, बरमा, बंगाल, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका, इथोपिया सहित कई देशों में समोसे खाए जाते हैं, लेकिन नाम अनेक होते हैं, जहां भारतवंशी नहीं हैं, वहां अधिकतर नॉनवेज समोसे ही खाए जाते हैं, जिनमें गोश्त भरा होता है। 13वीं-14वीं शताब्दी के आसपास या इससे पहले मिडिल ईस्ट के आक्रांताओं के साथ उनके रसोइयों के जरिये ईरान का सामसा यानि समोसा भारत पहुंचा था। अमीर खुसरो ने भी लिखा है कि शहंशाह समोसा बहुत चाव से खाते थे, जिसमें गोश्त और प्याज भरा होता था। इब्नबतूता ने भी ऐसे विदेशी आक्रमणकारी के बारे में लिखा है कि वे गोश्त, ड्राइ फ्रूट्स से भरे समोसे खाते थे। अकबर के समय ‘आइने अकबरीÓ में ईरानी समोसे को बनाने की रेसिपी का जिक्र है। लेकिन इसमें समोसे को सनबूशाह संबोाधित किया गया है।

समोसे का पहला जिक्र

9वीं शताब्दी में सबसे पहले एक फारसी कवि इशाक-अल-मौसिली की कविता में समोसे का जिक्र देखने को मिलता है। उन्होंने अपनी कविता में सनबुसज की खूब तारीफ की और बताया है कि इरान में इसे खूब खाया जाता था। समोसे को ही फारसी में सनबुसक कहा गया, जो कि फारसी भाषा के शब्द सनबोसाग से निकला है। मुगलों के समय भारत में जब समोसा आया तो इसमें आम लोगों ने आलू भरना शुरू कर दिया। अब आलू भी भारत का नहीं है। पुर्तगाली जब गोवा पहुंचे थे तो वे अपने साथ आलू लाए थे, जा कि दक्षिणी अमेरिका में उगाया जाता था। इसके बाद आलू समोसे का ही हो गया और अब आलू बिना समोसा की कल्पना नहीं की जा सकती, प्रयोग जरूर होते हैं, लेकिन आलू वाला समोसा ही ज्यादा खाया जाता है।

फास्टफूड का चलन, लेकिन समोसा बेहतर

आज भारत में भी फास्टफूड का चलन चल रहा है। पिज्जा, बर्गर, मोमोज आदि काफी शौक से खाए जाते हैं, लेकिन समोसा अपनी अलग ही डिमांड व पहचान रखता है। रिसर्च के अनुसार भी समोसा सभी फास्ट फूड से सेहत के लिए बेहतर है, क्योंकि इसमें सादे मसाले आदि ही यूज होते हैं, फास्ट फूड की तरह हानिकारक प्रिजर्वेटिव, एसिडिटी रेगुलेटर आदि यूज नहीं होते।

बंदर नहीं मछलियां हैं इंसानों की पूर्वज ! पढि़ए यह रिसर्च रिपोर्ट

ऐसा माना जाता है कि धरती पर बंदर मानव जाति के पूर्वज हैं। लाखों वर्षों के विकास के बाद वानर से ही इंसान बनता गया। लेकिन साइंस द्वारा अब एक नया दावा किया जा रहा है कि बंदर इंसान के पूर्वज नहीं बल्कि असली पूर्वज मछली थी। इंसान को दांत और जबड़े मछलियों से मिले हैं। यह दावा 40 करोड़ साल पहले की मछलियों के मिले जीवाश्म (फॉसिल) पर रिसर्च के बाद किया जा रहा है। वोट पोल कर अपनी राय जरूर दें  

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आपने भी देखा होगा कि शार्क जैसी मछलियों के बड़े-बड़े नुकीले दांत होते हैं। अब जो करोड़ों वर्ष पुरानी मछलियों के फॉसिल मिले हैं, उनमें रीढ़ की हड्डी व जबड़े और दांत भी मिले हैं। अब वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हो सकता है जीवों में जबड़ों के विकास की शुरूआत यहीं से हुई हो। इवोल्यूशन के दौरान यह मछलियां पानी से बाहर धरती पर आई और फिर जीवों में दांतों व जबड़ों का विकास शुरू हुआ। आज इंसानों और बहुत से जानवारों के पास चबाने के लिए दांत और जबड़े हैं।

चीन में मिले मछलियों के जीवाश्म

40 करोड़ वर्ष से पुराने मछलियों के ये जीवाश्म दक्षिण चीन में मिले हैं। इसकी एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने पांच प्रजातियों की मछलियों के फॉसिल खोजे हैं, जिनमें एक मछली का फॉसिल 43.6 करोड़ साल पुराना तो तीन मछलियों के फॉसिल 43.9 करोड़ साल पुराने हैं। इन पर जब रिसर्च हुई तो इन मछलियों के पास रीढ़ की हड्डी और जबड़े व दांत मिले। यह मछलियां 20 के आसपास हैं और इनकी लंबाई करीब डेढ़ इंच है। यह शार्क जैसी मछली का जीवाश्म है। कहा जा सकता है कि यह आज की शार्क की पूर्वज रही होगी। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि मछलियां पानी से बाहर आई होंगी और उसी से स्तनधारी जीव, पक्षी, इंसान व अन्य जानवरों में इनका विकास हुआ होगा।

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दिल की बात: समय पर सीपीआर दें तो बचाई जा सकती है मरीज की जान

दिल के रोग सबसे अब बहुत आम होने लगे हैं और सबसे ज्यादा मौतें दिल का दौरा पडऩे से हो रही हैं। लेकिन हम अपने दिल के प्रति तो लापरवाह है हीं, लेकिन हम दिल के दौरा पडऩे पर भी मरीज के प्रति लापरवाही बरतते हैं। इस समय देश में 40 वर्ष के आसपास की आयु के लोग भी हृदयाघात की चपेट में आ रहे हैं। बड़े अस्पतालों में 10 प्रतिशत केस कम आयु के ही आ रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि दिल का दौरा पडऩे पर 10 लोगों से 4 लोगों की जान बचाई जा सकती है, यदि आसपास मौजूद इंसान उन्हें समय पर सीपीआर यानि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन दे दे। हाल ही में बेहद मशहूर बॉलीवुड सिंगर केके की एक कसंर्ट के दौरान हृदयाघात से जान चली गई। लेकिन शायद ही आप जानते हों कि उनकी जान बचाई जा सकती थी।

पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक का कहना है कि उनकी बाइ्रं तरफ की मेने कोरोनरी में 80 प्रतिशत ब्लॉकेज था, जबकि बाकी धमनियों में छोटे ब्लॉकेज थे। यदि उन्हें तुरंत सीपीआर दिया गया होता तो वे बच जाते। वहीं एक वरिष्ठ प्रोफेसर आदित्य कपूर का भी दावा है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भी बचाया जा सकता था, अगर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, शिलाँग के ऑडियंस में से किसी एक ने भी उन्हें सीपीआर दिया होता। हाल ही में चेन्नई एयरपोर्ट पर एक सीआईएसएफ जवान ने एक यात्री को दिल का दौरा पडऩे पर सीपीआर देकर उनकी जान बचा ली थी। आज विश्व हृदय दिवस है, तो जानिए सीपीआर के बारे में और दूसरों को भी जागरूक करें।

आखिर क्या होता है सीपीआर

सीपीआर एक जिंदगी बचाने की तकनीक है। हार्ट अटैक आने पर इंसान की धड़कनें बंद होने लगती हैं। अस्पताल ले जाने तक वह दम तोड़ देता है। यदि इस स्थिति में मरीज को जमीन पर सीधा लेटाकर, उनके हाथ पांव सीधे रखकर कोई इंसान ऊपर से उनकी छाती पर दबाव दे तो मरीज की सांसें चलती रहती हैं। इसे सीपीआर कहते हैं। मुंंह से भी सीपीआर दी जा सकती है। बच्चों के मामले में हलका प्रेस करना होता है। सीपीआर देने वाले शख्स को भी अपने बाजू सीधे रखने होते हैं। केवल हृदयाघात ही नहीं बेहोशी के समय यदि कोई सांस न ले पाए, दुर्घटना के समय यदि किसी को सांस न आए या फिर पानी में डूबे इंसान को भी इसी प्रकार सीपीआर देकर बचाया जा सकता है। कम से कम उन्हें चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होनेे तक तो बचाया ही जा सकता है। यह भी ध्यान दें कि सीपीआर देते समय भी देर न करें, सीपीआर देते दौरान ही मरीज को अस्पताल ले जाने की व्यवस्थाएं भी होती रहनी चाहिए।

सीपीआर से होगा क्या

सीपीआर देने से अचेत हो चुके व्यक्ति को सांस लेने में सहायता मिलती है। जिससे ब्रेन में खून का सर्कुलेशन चलता रहता है। सीपीआर देने से 10 मामलों में 4 की जान बचाई जा सकती है।

भारत में लोग अंजान

आपको जानकर हैरानी होगी कि लाइफ सेविंग इस तकनीक को जानने में भारत बेहद पिछड़ा हुआ है। यदि कोई हृदयाघात, दुर्घटना, बेहोशी या पानी डूबने की स्थिति में अचेत है तो आसपास के लोगों को या तो इस बारे पता ही नहीं, या फिर अगर पता है तो डर के मारे वह सीपीआर करता नहीं। होता यह है कि लोग मरीज के आसपास भीड़ बनाकर इकट्ठे हो जाते हैं और तब तक देर हो चुकी होती है। भारत में मात्र 2 फीसदी लोगों को ही सीपीआर देना आता है। जबकि अमेरिका में 20 प्रतिशत लोग सीपीआर देने में एक्सपर्ट हैं।