Life Style

Life Style

Take advantage of Atal Pension Yojana, by investing only Rs 7, you will get pension of Rs 5,000 per month in old age.

Atal Pension Yojana 2024 : अटल पेंशन योजना का उठाये फायदा, केवल 7 रूपये निवेश करने से बुढ़ापे में मिलेगी 5 हजार रुपये महीने पेंशन

Atal Pension Yojana 2024 : यदि आप अपना बुढ़ापा आराम से बिताना चाहते है, तो आप अटल पेंशन योजना का फायदा उठा सकते हैं। बुढ़ापे में पेंशन के लिए केंद्र सरकार यह अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र के वर्कर्स को ध्यान में रखते हुए लायी  थी। सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 में इस योजना की शुरुआत की थी। दरअसल इस योजना में निवेशक को 1 हजार, 2 हजार, 3 हजार, 4 हजार या 5 हजार रुपये प्रति महीने की गांरटीड पेंशन 60 साल की उम्र से मिलती है। पेंशन (Atal Pension Yojana 2024) की राशि सब्सक्राइबर द्वारा दिये जाने वाले योगदान पर निर्भर करती है। कोई भी भारतीय नागरिक अटल पेंशन योजना का लाभ उठा सकता है।

निवेशक की योग्यता

सब्सक्राइबर यानि निवेशक की उम्र 18 से 40 साल के मध्य होनी चाहिए। यानी पेंशन का लाभ पाने के लिए कम से कम 20 साल तक निवेश करना होगा।

निवेशक के पास एक सेविंग्स बैंक खाता या पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक खाता होना चाहिए।

केवल 7 रुपये महीने करना होगा निवेश

यदि कोई निवेशक 18 साल की उम्र में अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana 2024) का सब्सक्राइबर बनता है, तो उसे रिटायरमेंट पर 5000 रुपये महीने की पेंशन पाने के लिए सिर्फ 210 रुपये महीने निवेश करना होगा। यानी हर दिन का सिर्फ 7 रुपया। वहीं, 1000 रुपये महीने की पेंशन पाने के लिए महीने में सिर्फ 42 रुपये निवेश करने की आवश्यकता पड़ेगी। 

इस योजना का फायदा पति-पत्नी भी उठा सकते हैं

 

  • पाठकों को बता दें कि, अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana 2024) का फायदा पति और पत्नी दोनों उठा सकते हैं।
  • इस तरह घर में हर माह अधिकतम 10,000 रुपये महीने की पेंशन आएगी।
  • यदि पति या पत्नी में से किसी की मौत हो जाती है, तो दूसरे को पेंशन का फायदा मिलेग।
  • वहीं, दोनों की मौत हो जाती है, तो सारा पैसा नॉमिनी को वापस मिल जाएगा।

(Atal Pension Yojana 2024) अकाउंट खुलवाएं 

  • जिस बैंक ब्रांच या पोस्ट ऑफिस में आपका खाता हो, वहां जाएं या खाता नहीं है, तो एक सेविंग खाता खुलवाएं।
  • बैंक खाता नंबर या पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक खाता नंबर देकर बैंक स्टाफ की सहायता से अटल पेंशन योजना रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरें।
  • आधार/मोबाइल नंबर उपलब्ध कराएं। यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन कम्युनिकेशन की सुविधा के लिये ठीक रहता है।
  • सेविंग बैंक खाता या पोस्ट ऑफिस खाता में जरूरी पैसा सुनिश्चित करें, जिससे मंथली/तिमाही/छमाही/सालाना योगदान ट्रांसफर हो सके।

Atal Pension Yojana 2024 : अटल पेंशन योजना का उठाये फायदा, केवल 7 रूपये निवेश करने से बुढ़ापे में मिलेगी 5 हजार रुपये महीने पेंशन Read More »

EPFO amended its rules, now money will be easily given to the nominee on the death of the PF account holder.

EPFO New Rules News : ईपीएफओ ने किया अपने नियमों में संशोधन, PF खाताधारक की मौत पर अब आसानी से नॉमिनी को दिया जाएगा पैसा  

EPFO New Rules News : कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के सदस्यों के लिए एक विशेष खबर है। पीएफ अकाउंट होल्डर के लिए डेथ क्लेम (Death Claim) के नियम में संशाेधन किया गया है। इस तरह नियम में संशोधन होने से खाताधारकों परेशानियों को कुछ हद तक निजात दिया है। इस तरह नियम के तहत कर्मचारी संगठन नें डेट क्लेम सेटलमेंट का सरल बना दिया है।

 

 

नियम संशोधन से क्या होगा ?

पाठकों को बता दें कि, ईपीएफओ ने एक सर्कुलर जारी कर कहा है की, नए नियम के तहत अगर किसी ईपीएफओ (EPFO New Rules News) सदस्य की किसी कारणवश मौत हो जाती है और उसका आधार पीएफ अकाउंट (PF Account) से लिंक नहीं है या फिर आधार कार्ड (Aadhaar Card) में दी गई सूचना, पीएफ अकाउंट के साथ दिया गया विवरण से मिलान नहीं करता हैं। फिर भी उस अकाउंट होल्डर के पैसों का डिपोजिट नॉमिनी को कर दिया जाएगा। इस नियम संशोधन के तहत संगठन ने डेथ क्लेम सेटलमेंट को आसान बना दिया है।

 

 

नया नियम कई त्रुटियों को दूर करेगा और नया बदलाव लाएगा
पाठकों को ईपीएफओ (EPFO New Rules News) के नये नियम के बारे में सूचित करते हैं कि, इससे पहले आधार के डिटेल्स में कोई त्रुटि यानि गलती हो गई हो या कोई तकनीकी दिक्कत की वजह से आधार संख्या निष्क्रिय हो गई हो, फिर इस स्थिति में डेथ क्लेम में समस्याओं का सामना करना पड़ता था। दरअसल, इसका प्रभाव ये होता था कि, पीएफ खाताधारक की मृत्यु के बाद कर्मचारियों को उसकी आधार विवरण का मिलान करने के लिए काफी माथापच्ची करनी पड़ती थी और इसके साथ ही नॉमिनी को पीएफ के पैसों के लिए लंबा वेट भी करना पड़ता था। इसलिए ईपीएफओ के द्वारा नियम संशोधन कई त्रुटियों को दूर करेगा और नया परिवर्तन आएगा।

 

 

पीएफ भुगतान के लिए किसकी मंजरी आवश्यक होगी
EPFO (EPFO New Rules News) के मुताबिक है कि, किसी कारणवश शक्स या कर्मचारी की मौत के बाद आधार विवरण को नहीं सुधारा जा सकता है, इसलिए भौतिक सत्यापन के आधार पर पैसों का डिपोजिट नॉमिन को किया जायेगा। मगर इसके लिए क्षेत्रीय अधिकारी की मंजूरी लेना आवश्यक होगा। क्षेत्रीय अधिकारी के मुहर के बिना पीएफ का पैसा का डिपोजिट नॉमिनी को नहीं किया जायेगा। इसके अतिरिक्त किसी भी तरह का फर्जीवाड़ा रोकने के लिए ईपीएफओ ने विशेष ध्यान रखा है, इस नए नियम संशोधन के जरिए जो नॉमिनी या फैमली के मेंबर हैं ! उनकी भी सत्यता की पूरी जांच की जाएगी, उसके बाद पीएफ के पैसे का डिपोजिट किया जायेगा। 

 

 

यदि विवरण में नॉमिनी का नाम नहीं है तो ?
यदि ऐसा कोई केस सामने आता है कि, पीएफ खाता धारक ने अपनी विवरण में नॉमिनी का नाम नहीं दिया है और उसकी किसी कारणवश मौत हो जाती है, तब पीएफ के पैसों का डिपोजिट नियमों के तहत से मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारी को किया जायेगा। इसके लिए उसे अपना अपना आधार कार्ड जमा करना होगा। 

EPFO New Rules News : ईपीएफओ ने किया अपने नियमों में संशोधन, PF खाताधारक की मौत पर अब आसानी से नॉमिनी को दिया जाएगा पैसा   Read More »

Many questions raised on the 'safety' of co-vaccine in new research, clarification given while reacting to the questions

CO-Vaccine Side Effect News : नए शोध में को-वैक्सीन की ‘सेफ्टी’ पर उठे कई सवाल, सवालों पर प्रतिक्रिया करते हुए दी सफाई

CO-Vaccine Side Effect News : पिछले एक डेढ़ महीने से को-वैक्सीन के कथित साइड इफेक्ट्स को लेकर हलचल मचने के बाद अब भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर आई एक रिपोर्ट ने सनसनी मचा दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि को-वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में कुछ तरह के साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं।

 

 

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में को-वैक्सीन पर किया गया अध्ययन

भारत बायोटेक कंपनी की को-वैक्सीन (CO-Vaccine Side Effect News) को लेकर हाल ही में हुई एक शोध ने सवाल खड़े कर दिए। यह अध्ययन बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है, इस अध्ययन की रिपोर्ट स्प्रिंगर लिंक जर्नल में पब्लिश की गई है। अध्ययन में यह बताया गया है कि, को-वैक्सीन लगवाने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में कुछ तरह के साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं। 

बता दें कि, को-वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक की ओर से भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया है कि, कोवैक्सीन पर पहले भी कई स्टडी और शोध में को-वैक्सीन के एकदम सुरक्षित होने का प्रमाण मिला है। कंपनी ने कहा है कि, को-वैक्सीन का सेफ्टी ट्रैक रिकॉर्ड शानदार है। 

 

 

कितने लोगों पर शोध किया गया ?

कंपनी ने अपने शोध में को-वैक्सीन (CO-Vaccine Side Effect News) को लेकर हुई इस स्टडी में 1 हजार 24 लोगों को शामिल किया गया था। ऐसे में सभी लोगों में 635 किशोर और 291 युवा थे, इस दौरान सभी लोगों से टीका लगने के एक वर्ष बाद तक फॉलोअप व चेकअप के लिए संपर्क किया भी गया। 

स्टडी और शोध में लगभग 48% यानी 304 किशोरों में वायरल अपर रेस्पेरेट्री ट्रैक इंफेक्शंस देखा गया है। वहीं यही स्थिति 42.6% यानी 124 युवाओं में भी देखने को मिली है।  4.7% लोगों में नसों से जुडी समस्याएं भी देखी गई हैं। वहीं 5.8% युवाओं में टीके की वजह से नसों और जोड़ों में दर्द की दिक्कत आई है। 

वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, भारत बायोटेक की को-वैक्सीन का असर महिलाओं में भी देखने को मिला है। तकरीबन 4.6% महिलाओं में महावारी से जुड़ी परेशानियां हुई है। 2.7% महिलाओं में आंखों से जुड़ी समस्याएं सामने आईं है। इसके साथ ही 0.6% महिलाओं में हाइपोथारोइडिज्म पाया गया है। वहीं कुल 1% लोगों में गंभीर साइड इफेक्ट्स भी देखे गए हैं।

 

 

कोविशील्ड को लेकर ब्रिटेन की कंपनी ने मानी थी गलती
एक डेढ़ महीने पहले ही भारत में एस्ट्राजेनेका कंपनी की कोरोना वैक्सीन (CO-Vaccine Side Effect News) कोविशील्ड के कथित साइड इफेक्ट्स से जुड़ी खामियां पर एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) ने ब्रिटेन हाईकोर्ट में माना कि उसके कोविड-19 वैक्सीन से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। जिसके कारण भारत के हजारों की तादात में लोगों के अंतर भय बैठ गया कि, उन्हें गलत को-वैक्सीन लगाई गई है। जिससेे उन्हें बवाल मचाना शुरु कर दिया था।

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के क्या लक्षण दिखते है ?

को-वैक्सीन (CO-Vaccine Side Effect News) लगाने के बाद कई लोगो पर कंपनी द्वारा शोध किया गया है, जिनमें लोगों में को-वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स के कुछ लक्षण देखे गए हैं। जैसे  इन लक्षणों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम से शरीर में खून के थक्के जमने (Blood Clot) लगते हैं या फिर शरीर में प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगते हैं। बॉडी में ब्लड क्लॉट की वजह से ब्रेन स्ट्रोक की भी संभावना बढ़ जाती है। इसी वजह से एस्ट्राजेनेका कंपनी के कोर्ट में यह जवाब देने के बाद भारत में कोविशील्ड लगाने लगाने वालों में हलचल पैदा हो गई थी।

 

 

को-वैक्सीन को लेकर भारत बायोटेक कंपनी ने क्या बयान जारी किया है ?

बता दें कि, को-वैक्सीन (CO-Vaccine Side Effect News)  बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने बयान जारी किया है कि,  उनके लिए वैक्सीन के असर से ज्यादा लोगों की सुरक्षा पहले है। को-वैक्सीन भारत सरकार की यूनिट ICMR के साथ मिलकर विकसित की गई और सिर्फ एकमात्र कोरोना वैक्सीन है। कंपनी ने दावा किया है कि, वैक्सीन के असरदारी होने को लेकर कई टेस्ट किए गए हैं ! मगर टीका कितना असरदार है, इसके बारे में सोचने से पहले लोगों की सुरक्षा का मद्देनजर यानी ध्यान में ऊपर रखा गया है। 

CO-Vaccine Side Effect News : नए शोध में को-वैक्सीन की ‘सेफ्टी’ पर उठे कई सवाल, सवालों पर प्रतिक्रिया करते हुए दी सफाई Read More »

Child gets new life with vaccine worth Rs 17.5 crore, everyone from Bollywood actor to vegetable seller helped

Spinal Muscular Atrophy : 17.5 करोडं रुपये के टीके से बच्चे को मिला नया जीवन, बॉलीवुड अभिनेता से लेकर सब्जी विक्रेता तक ने की सहायता

Spinal Muscular Atrophy : राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर के जेके लोन हस्पताल में मंगलवार को 2 वर्ष के हृदयांश को 17.50 करोड़ रुपए का टीका लगाया गया। 2 वर्ष के हृदयांश एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। इस गंभीर बीमारी का नाम है स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी। इस बीमारी के इलाज के लिए 17 करोड़ रुपये के टीके की सख्त आवश्यक थी। ऐसे में हृदयांश के इलाज के लिए टीके को अमेरिका से मंगवाकर लगाया गया है।

 

 

हृदयांश राजस्थान पुलिस के सब-इंस्पेक्टर के बेटे हैं
दरअसल, हृदयांश शर्मा राजस्थान पुलिस में दे रहे अपनी सेवा सब-इंस्पेक्टर नरेश शर्मा के बेटे हैं। पुलिस सब-इंस्पेक्टर पिता ने बताया है कि, हृदयांश को आम जिंदगी जीने के लिए 17.5 करोड़ रुपये का टीका देने की सख्त आवश्यकता थी। बता दें कि, क्राउडफंडिंग के जरिए अमेरिका से मंगवाया गया 17 करोड़ 50 लाख का टीका (Spinal Muscular Atrophy) अब हृदयांश को लग चुका है।

 

 

आम व्यक्ति से लेकर बड़े सेलिब्रेडिज ने की सहायता
जब हृदयांश शर्मा 1 वर्ष 8 माह के थे, तब से पुलिस ने उसके लिए एक क्राउडफंडिंग के जरिए अभियान शुरु किया था। जबकि, इस दौरान एक समय प्रणाली निर्धारित की गई थी, क्योंकि टीका सिर्फ तब तक लगाया जा सकता है, जब तक कि बच्चा 2 साल का न हो जाए। इस अभियान को क्रिकेटर दीपक चाहर और बॉलीवुड सिंगर एवं अभिनेता सोनू सूद का समर्थन मिला, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपील पोस्ट की। इस तरह पुलिस के चलाए अभियान में जयपुर के फल और सब्जी विक्रेताओं एवं दुकानदारों सहित समाज में सभी प्रकार के लोगों का मुख्य रुप से योगदान मिला। इसी प्रकार अलग-अलग सरकारी संगठनों और सामाजिक संगठनों ने भी इस अभियान के लिए पैसा एकत्रित करने में हेल्प की।

 

 

अमेरिका की कंपनी ने भी दी बच्चे को राहत
राजस्थान पुलिस ने पहली बार बच्चे की जिंदगी के लिए बड़े पैमाने पर क्राउडफंडिंग की है। तीन माह से भी कम समय में 9 करोड़ रुपये ईक्कठे किए और बच्चे को जयपुर के जेके लोन अस्पताल में टीका लगाया गया। बताया जा रहा है कि, बाकि की राशि तीन किस्तों में एक वर्ष के अंतर ही डिपोजिट करनी होगी। एक भारतीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, टीका बनाने वाली अमेरिकी कंपनी ने भी बच्चे के इलाज में काफी हेल्प की है। कंपनी ने टीके की 17.5 करोड़ रुपए की राशि को चार किश्तों में जमा कराने की छूट दी गई है। यानी अभी कंपनी को 8.5 करोड़ रुपये देने तथा उसके लिए जुटाने बाकि हैं। ऐसे में बच्चे को इस टीके (Spinal Muscular Atrophy) से राहत भरी और सामान्य नई जिंदगी मिल गई है।

 

 

स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी बीमारी से बच्चों में क्या लक्षण होते है ?
अमेरिकी वैज्ञानिको के एक स्वास्थ्य संबंधित शोध के मुताबिक, स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy) बीमारी से पीड़ित छोटा बच्चा या फिर कोई मरीज की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। शरीर के अंगों की गति और यहां तक कि सांस लेने में दिक्कते आती है। इस तरह आम बच्चों में बीमारी के लक्षण दिखने को मिल सकते हैं।

Spinal Muscular Atrophy : 17.5 करोडं रुपये के टीके से बच्चे को मिला नया जीवन, बॉलीवुड अभिनेता से लेकर सब्जी विक्रेता तक ने की सहायता Read More »

Check your ex-partner on social media every day! So be careful, this can be a serious disease

Rebecca Syndrome disease explain : रोज सोशल मीडिया पर अपने एक्स पार्टनर को करते हैं चेक ! तो हो जाए सावधान, हो सकती है ये गंभीर बीमारी

Rebecca Syndrome disease explain : जब युवक या युवती किसी कॉलेज या लाईब्रेरी में पढ़ते समय एक- दूसरे की सुंदरता या भावनाओं के आकर्षण से प्रभावित होकर पसंद करते है। ऐसे में युवक-युवती एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हुए दिनचर्या काम में सहयोग करते है। इस तरह के सहयोग से दोनों में दाेस्ती का महत्व बढं जाता है। फिर दोस्ती एक अवधि समय के बाद प्रेम में बदलने लग जाती है। फिर यहां से रिलेशनशिप का दौर शुरु हो जाता। जाहिर सी बात है कि रिलेशनशिप में रिश्तो का बचाना हर दिन संदेह की दृष्टि से विश्वासी कमजोर का परिणाम है। किसी भी रिलेशनशिप में लोग अचानक से अलग होते हैं तो उनके लिए यह पल आसान नहीं होता। कई लोग जल्दी मूवऑन करके जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, तो कई लोग जो अपने एक्स पार्टनर को भूल नहीं पाते। हालांकि, पार्टनर की याद में पड़े रहना सामान्य बात नहीं बल्कि यह संकेत है, एक गंभीर बीमारी का।

 

 

 

रेबेका सिंड्राेम (Rebecca Syndrome disease explain)

आज के दौर में रिलेशनशिप टूटने का सबसे बड़ा कारण है, सोशल मीडिया । संदेह की दृष्टि से रिलेशनशीप में से एक पार्टनर तब अचानक से रिश्ता तोड़कर और साेशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म से अपने पार्टनर काे ब्लॉक कर देता है। इस तरह से अपने पार्टनर को फोन और साेशल मीडिया की लत लगाकर उसे छोड़कर जाना उसे बेहद खतरनाक बिमार में छोड़कर जाने के बराबर है। अगर किसी युवक या युवती द्वारा अपने पार्टनर को भूल ना पाना और रोजाना उसका पीछा करना एक बीमारी है। इस बीमारी का नाम रेबेका सिंड्रोम है, जो किसी व्यक्ति के अपने पार्टनर का बार-बार याद करना और उसके पीछा करने से होती है। ब्रिटेन के लंदन में सेंटर फॉर फ्रायडियन एनालिसिस एंड रिसर्च के संस्थापक सदस्य और मनोविश्लेषक डॉक्टर डेरियन लीडर द्वारा गढ़ा गया ‘रेबेका सिंड्रोम’, एक व्यक्ति द्वारा अपने साथी के पूर्व प्रेमी के प्रति अनुभव की जाने वाली पैथोलॉजिकल ईर्ष्या के एक गंभीर रूप का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है।

Rebecca syndrome: When jealousy over past relationships becomes a haunting obsession

 

 

 

जलन और जुनून के कारण होता है रेबेका सिंड्राेम (Rebecca Syndrome disease explain)

रिलेशनशिप मामले से परिचित चार्टर्ड मनोवैज्ञानिक डॉक्टर लुईस गोडार्ड-क्रॉली ने न्यूजवीक को बताया कि, यह स्थिति मुख्य रूप से प्रभावित व्यक्ति की अतार्किक ईर्ष्या और अपने साथी के प्रति जुनून के बारे में है। यह ईर्ष्या पूर्वव्यापी ईर्ष्या में निहित है, जहां व्यक्ति अपने साथी के पिछले रिश्तों के प्रति जुनूनी रूप से व्यस्त हो जाते हैं और उसके ख्यालों में खोये रहते है। भले ही ऐसा हो उनकी ईर्ष्या का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है। जबकि, यह ध्यान देना आवश्य है कि, रेबेका सिंड्रोम को मुख्यधारा के रोगों का निदान करने वाले वर्गीकरणों में आधिकारिक तौर पर एक मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। बल्कि, यह एक सांस्कृतिक संदर्भ के रूप में कार्य करता है। इस स्थिति से जुड़े जुनून के कारण दखल देने वाले विचार, पीछा करने वाले व्यवहार और अन्य नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। 

Rebecca" Syndrome: Understanding Jealousy Towards Ex-Partners

 

 

 

 

कैसे करें रेबेका सिंड्रोम (Rebecca Syndrome disease explain) से बचाव ?

अगर आपको संदेह है कि, रेबेका सिंड्रोम आपके रिश्ते को प्रभावित कर सकता है तो कुछ स्पष्ट संकेतों पर नजर रखें। डॉक्टर गोडार्ड-क्रॉली ने कहा, “एक सामान्य संकेत एक जुनूनी व्यस्तता है जहां प्रभावित व्यक्ति लगातार अपने साथी के पिछले रोमांटिक या यौन संबंधों के बारे में सोच रहा है।”डॉक्टर ने कहा, “व्यक्ति अपनी ईर्ष्या को प्रबंधित करने के प्रयास में नियंत्रण या दखल देने वाले व्यवहार में संलग्न हो सकता है जैसे कि अपने साथी के संदेशों की चेक करना या उन्हें दूसरों से अलग करने की कोशिश करना। वे अपने साथी के पिछली घटनाओं के बारे में संदेह या माेह के विचार रख सकते हैं, यह मानते हुए कि पूर्व-साझेदार मौजूदा रिश्ते के लिए खतरा बना हुआ है।

रेबेका सिंड्रोम से जुड़ी प्राथमिक चिंताओं में से एक रिश्ते के अंतर विश्वास और अंतरंगता को खत्म करने की क्षमता है। कभी-कभी स्वस्थ साझेदारियों के विघटन की ओर भी ले जाती है। अच्छी खबर यह है कि पैथोलॉजिकल ईर्ष्या को प्रबंधित करने और इसे रिश्ते को नष्ट करने से रोकने के तरीके हैं। खुले और ईमानदार संचार को बढ़ावा देना और दोनों भागीदारों के लिए अपनी भावनाओं और डर पर चर्चा करने के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाना और स्वस्थ संबंध बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।

डॉक्टर ने सलाह दी है कि रिश्ते के भीतर विश्वास बनाना और बनाए रखना महत्वपूर्ण है। दोनों भागीदारों को भरोसेमंद होने और एक-दूसरे पर भरोसा करने की कोशिस करने चाहिए। सहानुभूति का अभ्यास करना और एक-दूसरे के दृष्टिकोण और भावनाओं को समझना अधिक सहायक और पोषणपूर्ण वातावरण को बढ़ावा दे सकता है। इससे दंपत्ती के बीच समस्या कम होगी।

Rebecca Syndrome disease explain : रोज सोशल मीडिया पर अपने एक्स पार्टनर को करते हैं चेक ! तो हो जाए सावधान, हो सकती है ये गंभीर बीमारी Read More »

The Health Ministry shared the post on Twitter and said, avoid giving water to a person who has fainted due to heat! This danger cannot happen

Health Ministry Advise post : हेल्थ मिनीस्ट्री ने एक्स पर पोस्ट शेयर कर कहा, गर्मी के कारण बेहोश हुए व्यक्ति को पानी पिलाने से बचें! नहीं हो सकता है ये खतरा

Health Ministry Advise post : देशभर में गर्मी बढ़ने के साथ-साथ आग लगाने वाली लू ने भी दस्तक दे दी है। देशके कई राज्यों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पार चला गया है। ऐसे इस तरह के मौसम में डिहाइड्रेशन के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा सकती है।

 

 

 

स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी सलाह

भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry Advise post) ने ट्विटर एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए नागरिकों को सलाह दी है की,  नागरिकों को लू से बचने के लिए खुद को तैयार करने को कहा है। यदि, गर्मी के चलते आपको घबराहट जैसा कुछ भी अनुभव हो रहा है तो, अपने आपको को हाइड्रेट रखे है। इसके साथ ही स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए खूब पानी पीए, लूज कपड़े पहनने, ठंडी जगह पर रहें। इसके अलावा, अगर कोई बेहोशी की अवस्था में हो तो उस स्थिति में उसे उसी वक्त उसे पानी ना पिलाएं।

 

 

 

इलेक्ट्राइट्स असंतुलन की स्थिति बन सकती है ?

विशेष डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक, बेहोश व्यक्ति को पानी पिलाने में कई समस्याएं होती है। जैसे पानी पेट की बजाए फेफड़ो में प्रवेश कर सकता है और ऐसे में उस व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। साथ ही उसे निमोनिया होने का भी खतरा बढ़ सकता है। यदि व्यक्ति को पानी गलत तरीके से पिलाया गया है तो, ऐसे में ब्लड स्ट्रीम में इलेक्ट्राइट्स का अंसतुलन पैदा कर सकता है। इससे दिल से सबंधी समस्या हो सकती हैं और व्यक्ति के बेहोश होने का असली कारण क्या है, इसे पता लगाने में भी देरी हो सकती है। 

 

 

 

यदि कोई व्यक्ति बेहोश हो जाए तो क्या करें ?

यदि कोई व्यक्ति बेहोश हो जाए तो, आपातकाल की स्थिति में व्यक्ति के सिर को धीरे से एक तरफ झुकाकर और उसकी ठोड्डी को ऊपर उठा दें। ऐसे में श्वास नली का रास्ता खुला रहेगा और इसे सांस नहीं आने की स्थिति में रिकवरी पोजीशन भी कहा जाता है। बेहोश व्यक्ति को अगर उल्टी हो रही है तो यह पोजीशन उसका दम घुटने से बचाता है। इस दौरान देखें कि, बेहोश व्यक्ति सांस ले भी पा रहा है या नहीं, यदि सांस नहीं आ रहा है तो उसे सीपीआर देने की कोशिश कर दें। यदि इसके बावजूद भी व्यक्ति को दिक्कते हो रही हो तो तुरंत उसे अस्पताल लेकर पहुंचें।

Health Ministry Advise post : हेल्थ मिनीस्ट्री ने एक्स पर पोस्ट शेयर कर कहा, गर्मी के कारण बेहोश हुए व्यक्ति को पानी पिलाने से बचें! नहीं हो सकता है ये खतरा Read More »

People's fear increased due to new variant of Corona, cases are increasing continuously

Covid19 virus new strain : कोरोना के नए वेरिएंट फ्लीर्ट से बढ़ी लोगों की ढे़ंशन, लगातार बढ़ रहे है मामले

Covid19 virus new strain : कोरोना महामारी का सदमा लोग अभी तक भूल नहीं पाए हैं। कोरोनाकाल का वह दौर आज भी याद कर लोग घबरा जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से भले ही कोरोना के मामलों में कमी आई हो, लेकिन यह वायरस अभी भी हमारे बीच में बना हुआ है और समय-समय पर इसके भिन्न-भिन्न स्ट्रेन हेल्थ एक्सपर्ट्स और लोगों के लिए ढ़ेंशन का विषय बने हुए हैं। इसी बीच अब कोरोना के और एक नए स्ट्रेन लोगों की ढ़ेंशन दी है।

बता दें कि, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में कोरोना के वेरिएंट का एक ढ़ेंशन की वजह बन गया है। कोरोना के इस नए वेरिएंट को वैज्ञानिकों ने फ्लीर्ट ‘FLIRT’ नाम रखा है। यह नया वेरिएंट ओमिक्रोन परिवार का बताया जा रहा है। जबकि, ओमिक्रोन कोरोना वायरस का वही (Covid19 virus new strain) स्ट्रेन है, जिसने दुनियाभर में सबसे ज्यादा कहर मचाया था। भारत में आई कोविड 19 की सेकंड वेव के पीछे भी ओमिक्रॉन ही उत्तरदायी था।

बूस्टर डोज लगवाने पर भी खतरा

 

स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के अनुसार, फिलहाल अमेरिका के कुछ ईलाकों में कोरोना वेरिएंट का स्ट्रेन (Covid19 virus new strain) फैल रहा है। ऐसे में नए स्ट्रेन के बढ़ते मामलों को देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि, यह वेरिएंट दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। इतना ही नहीं ऐसा भी कहा जा रहा है कि, वैक्सीन लगवाने के बाद भी यह स्ट्रेन आपको अपनी लपेट में ले सकता है, जिसकी वजह से लोगों की ढ़ेंशन बढ़ गई है।

यूएसए पाया गया नया वेरिएंट

 

बता दें कि, कोरोना का ये नया वेरिएंट अमेरिकी वैज्ञानिकों को वेस्ट वॉटर की संज्ञान में मिला है। अमेरिकी वैज्ञानिक जे. वेइलैंड के मुताबिक, लोगों को इस नए वेरिएंट को लेकर सावधानी बरतने की आवश्यकता है। अमेरिकी वैज्ञानिक ने बताया कि, वेस्ट वॉटर की जांच कर रही उनकी टीम को पानी के कुछ सैंपल में कोरोना का नया वेरिएंट मिला, जिसके बाद उनकी परेशानी बढ़ गई है। वैज्ञानिकों मानना है कि, गर्मी की वजह से यह वेरिएंट कोरोना के मामले बढ़ा सकता है।

डायबिटीज और दिल की बीमारी के मरीजाें को संक्रमण का ज्यादा खतरा

 

अमेरिका के अलावा यह नया स्ट्रेंन (Covid19 virus new strain) दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद कम यानी कमजोर यूमिनीटी वाले लोगों को भी ज्यादा इंसफायर कर सकता है। जबकि, संभावना जताई जा रही है कि, यह वेरिएंट कोविड 19 की एक न्यू वेव की वजह बन सकती है। ध्यान देते हुए बता दें कि, कोरोना का यह वेरिएंट इसके अन्य वेरिएंट्स की तुलना में थाेड़ा भिन्न है। यह अन्य वेरिएंट की तुलना में ज्यादा संक्रामक हो सकता है। विशेषकर यदि आप डायबिटीज या दिल की बीमारी के मरीज हैं, ऐसे में आपको ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है।

 

 

Covid19 virus new strain : कोरोना के नए वेरिएंट फ्लीर्ट से बढ़ी लोगों की ढे़ंशन, लगातार बढ़ रहे है मामले Read More »

British company also admitted that AstraZeneca's Corona vaccine poses a risk of heart attack, Covishield vaccine has been prepared from the same formula, 1.75 crore doses administered in the country

Corona Vaccine news : ब्रिटिस कंपनी ने भी माना, एस्ट्राजेनेका की CORONA वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा, इसी फार्मूले से तैयार की गई है कोविशील्ड की Vaccine, देश में 1.75 करोड़ डोज लगे

जानें पूरा मामला

Corona Vaccine news : देश भर के लोगों को हिला देने वाली खबर सामने आ रही है। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा। एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है।

ब्रिटिश मीडिया टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन (Corona Vaccine news) से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है।

ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है।

 

 

 

सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक जेमी स्कॉट ने केस किया

अप्रैल 2021 में जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने यह वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा। इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने उनकी पत्नी से कहा था कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे।

 

 

 

 

कंपनी ने पहले दावों को नकारा, फिर माना

पिछले साल स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मई 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन से TTS नहीं हो सकता है। हालांकि इस साल फरवरी में हाईकोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में कंपनी इस दावे से पलट गई। इन दस्तावेजों की जानकारी अब सामने आई है।

हालांकिअवैक्सीन में किस चीज की वजह से यह बीमारी होती है, इसकी जानकारी फिलहाल कंपनी के पास नहीं है। इन दस्तावेजों के सामने आने के बाद स्कॉट के वकील ने कोर्ट में दावा किया है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन में खामियां हैं और इसके असर को लेकर गलत जानकारी दी गई। वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2021 में वैक्सीन से होने वाली बीमारी की पहचान की

वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मार्च 2021 में एक नई बीमारी वैक्सीन-इंड्यूस्ड (वैक्सीन से होने वाली) इम्यून थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (VITT) की पहचान की थी। पीड़ितों से जुड़े वकील ने दावा किया है कि VITT असल में TTS का ही एक सबसेट है। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इसे खारिज कर दिया।

 

 

 

 

कंपनी ने कहा- हमने मानकों का पालन किया

एस्ट्रजेनेका ने कहा, “उन लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है या जिन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। मरीजों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। हमारी रेगुलेटरी अथॉरिटी सभी दवाइयों और वैक्सीन (Corona Vaccine news) के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सभी मानकों का पालन करती है।”

कंपनी ने आगे कहा, “क्लिनिकल ट्रायल और अलग-अलग देशों के डेटा से यह साबित हुआ है कि हमारी वैक्सीन (Corona Vaccine news) सुरक्षा से जुड़े मानकों को पूरा करती है। दुनियाभर के रेगुलेटर्स ने भी माना है कि वैक्सीन से होने वाले फायदे इसके दुर्लभ साइड इफेक्ट्स से कहीं ज्यादा हैं।”

 

 

 

 

ब्रिटेन में नहीं इस्तेमाल हो रही एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन

खास बात यह है कि इस वैक्सीन (Corona Vaccine news) का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था। इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे।

मेडिसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी (MHRA) के मुताबिक ब्रिटेन में 81 मामले ऐसे हैं, जिनमें इस बात की आशंका है कि वैक्सीन (Corona Vaccine news) की वजह से खून के थक्के जमने से लोगों की मौत हो गई। MHRA के मुताबिक, साइड इफेक्ट से जूझने वाले हर 5 में से एक व्यक्ति की मौत हुई है।

 

 

रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रीडम ऑफ इन्फॉर्मेशन के जरिए हासिल किए गए आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में फरवरी में 163 लोगों को सरकार ने मुआवजा दिया था। इनमें से 158 ऐसे थे, जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाई थी। एस्ट्राजेनेका ने बचाई 60 लाख लोगों की जान

 

कंपनी ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने अप्रैल 2021 में ही प्रोडक्ट इन्फॉर्मेशन में कुछ मामलों में TTS के खतरे की बात शामिल की थी। कई स्टडीज में यह साबित हुआ है कि कोरोना महामारी के दौरान एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन आने के बाद पहले साल में ही इससे करीब 60 लाख लोगों की जान बची है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी कहा था कि 18 साल या उससे ज्यादा की उम्र वाले लोगों के लिए यह वैक्सीन (Corona Vaccine news) सुरक्षित और असरदार है। इसकी लॉन्चिंग के वक्त ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था।

Corona Vaccine news : ब्रिटिस कंपनी ने भी माना, एस्ट्राजेनेका की CORONA वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा, इसी फार्मूले से तैयार की गई है कोविशील्ड की Vaccine, देश में 1.75 करोड़ डोज लगे Read More »

Take maximum benefit of health insurance in this way, this policy will be useful to you in the hospital.

Health Insurance Plans : स्वास्थ्य बीमा का अधिकतम लाभ इस प्रकार लें, हस्पताल में ये पॉलिसी आयेगी आपके काम

Health Insurance Plans : स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों में कई अलग-अलग स्कीम शामिल हैं, उनमें से हर एक अपने अनोखे लाभ, सीमाएं और एक्सक्लूज़न हैं। इन सभी पहलुओं को पूरी तरह से समझ लेना बहुत आवश्यक है। जैसे कि, कुछ पॉलिसियों में डेंटल प्रोसिजर्स को कवर किया जाता है, लेकिन एक्सपेरिमेंटल मानी जाने वाली कुछ प्रकार की सर्जरीज़ उनमें शामिल नहीं होती हैं। इन बातों के बारे में पहले से जागरूक रहने से मेडिकल देखभाल के दौरान अचानक से आने वाले वित्तीय तनाव से बचा जा सकता है।

 

 

 

 

प्रपोजल फॉर्म भरते समय रखे ध्यान

बता दें की, प्रपोज़ल फॉर्म पर दी गई सूचना में कुछ भी गलत या झूठ नहीं होना चाहिए। यह आपके बीमा कवरेज की नींव है। प्रोपोजल फॉर्म में सभी खुलासे सही करें और सुनिश्चित करें कि उन्हें पॉलिसी में भी सही ढंग से दर्ज किया गया है। महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा न करने से क्लेम अस्वीकृत हो सकते हैं और कुछ मामलों में पॉलिसी रद्द भी हो सकती है।

 

 

 

 

कैशलेस सुविधा का लाभ

कैशलेस सुविधा स्वास्थ्य बीमा कंपनियों (Health Insurance Plans) द्वारा दिया जाने वाला एक महत्वपूर्ण लाभ है। इससे अस्पताल के बिल कंपनी और अस्पताल के बीच सीधे निपटाए जाते हैं। मेडिकल इमर्जेंसी के दौरान यह सुविधा होने से तत्काल धन की व्यवस्था करने का बोझ कम हो जाता है।

उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति को इमर्जेंसी सर्जरी के लिए भर्ती किया गया है और उसके पास कैशलेस सुविधा है तो उसका परिवार अस्पताल के बिल चुकाने के लिए धन जुटाने की चिंता करने के बजाय मरीज़ की रिकवरी पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इस सुविधा के तहत नियोजित उपचारों के लिए प्री-ऑथोराइज़ेशन होने से कवरेज और जेब से होने वाले खर्चों के बारे में स्पष्टता रहती है।

 

 

 

आपातकाल के दौरान नकदी ऋण के लिए 24 घंटे के लिए करें आवदेन

नियोजित या प्लानिंग कर होने वाले इलाज के मामले में अस्पताल में भर्ती होने से 48 घंटे पहले नकदी ऋण यानी कैशलेस के लिए आवेदन करें। इससे आपको भर्ती होने से पहले स्वीकार्यता और मात्रा की जानकारी मिल सकेगी। आपातकाल में, भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर नकदी ऋण के लिए आवेदन करें। आज के दौर में, अधिकांश बीमा कंपनियां गैर-नेटवर्क अस्पतालों में नकदी ऋण सुविधा दे रही हैं, अपनी बीमा कंपनी द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके सुविधा का लाभ उठाएं।

 

 

 

इस नियम के मुताबिक आपकी जेब से भी लग सकते हैं पैसे

जब मेडिकल खर्च के कुछ हिस्से का भुगतान पॉलिसीधारक को करना होता है, यानी को-पेमेंट के उपनियमों में कुछ पॉलिसियों में साझा वित्तीय जिम्मेदारी को रेखांकित किया गया है। अगर किसी पॉलिसी में सभी दावों पर 20% को-पेमेंट निर्धारित किया गया है, और अस्पताल का बिल 3,00,000 रुपये है, तो पॉलिसीधारक को 60,000 रुपये अपनी जेब से भरने होंगे। इन उपनियमों को पूरी तरह से समझने से पॉलिसीधारक अपने स्वास्थ्य देखभाल खर्चों के लिए अधिक प्रभावी ढंग से बजट बना सकता है। पॉलिसियों (Health Insurance Plans) में कमरे के किराए या कवर किए गए कमरे की श्रेणी की सीमा निर्धारित होती है। इन सीमाओं को पार करने पर क्लेम रकम से भारी कटौती हो सकती है।

 

उदाहरण के तौर पर, पॉलिसी सीमा से ज़्यादा कीमत का कमरा चुनने पर क्लेम का भुगतान कम हो सकता है। अपनी जेब से पैसा खर्च होने से बचने के लिए पॉलिसी सीमाओं के भीतर ही कमरा चुनना महत्वपूर्ण है। यह सीमा आपके क्लेम डिस्बर्समेंट में भारी कटौती ला सकती है, खासकर अगर आपकी पॉलिसी में प्रपोर्शनेट कटौती के प्रावधान शामिल हैं।

 

ऐसे प्रावधान में कमरे के किराए की पॉलिसी में निर्धारित सीमा के सापेक्ष कमरे की लागत के आधार पर क्लेम रकम के भुगतान को कम ज़्यादा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप अस्पताल का ऐसा कमरा चुनते हैं जिसकी कीमत आपकी पॉलिसी (Health Insurance Plans) की निर्धारित सीमा से अधिक है, तो न क्लेम भुगतान में न केवल कमरे का शुल्क कम मिलेगा बल्कि कुल अस्पताल बिल भी उस प्रपोर्शन में कम हो सकता है।

 

 

 

मेडिकल में इस समान के लिए जेब से खर्च करना पड़ सकता है पैसा

कई पॉलिसियों (Health Insurance Plans) में कुछ प्रोसिजर या उन्नत उपचारों के लिए उप-सीमाएं निर्धारित की जाती हैं। मरीज़ को सुझाए गए इलाज का खर्च अगर इन सीमाओं से ज़्यादा है, तो उस डिफरेंस रकम को भरने की जिम्मेदारी पॉलिसीधारक की होती है। किसी की मेडिकल देखभाल और वित्तीय योजना के बारे में जानकारीपूर्ण निर्णय लेने के लिए इन सीमाओं के बारे में जान लेना ज़रूरी है।

दस्ताने और पट्टियों जैसी मेडिकल कंज़्यूमेबल सामग्रियों का कवरेज हर पॉलिसी में अलग-अलग होता है, कई पॉलिसियों में ये वस्तुएं शामिल नहीं होती हैं। आम तौर पर ये एक्सक्लूज़न मामूली लग सकता है, लेकिन इसकी वजह से क्लेम की रकम का 3-5% खर्च आपको अपनी जेब से करना पड़ सकता है। पॉलिसीधारकों (Health Insurance Plans) को ऐसे एक्सक्लूज़न की सूचना पाने के लिए अपने पॉलिसी डिटेल्स की अच्छी तरह से जांच करनी चाहिए, इससे वह अपने कवरेज को अच्छी तरह से समझ सकेंगे।

Health Insurance Plans : स्वास्थ्य बीमा का अधिकतम लाभ इस प्रकार लें, हस्पताल में ये पॉलिसी आयेगी आपके काम Read More »

Bus conductor's son becomes Asia's biggest robotic surgeon, has performed more than 20 thousand complex cancer surgeries

Doctor success Story : बस कंडक्टर का बेटा बना एशिया का सबसे बड़ा रोबोटिक सर्जन, 20 हजार से ज्यादा कर चुके है जटिल कैंसर की सर्जरी

Doctor success Story : दिल्ली के छोटे से गांव से आने वाले सामान्य बस कंडक्टर का बेटा डॉक्टर डबास, आज भारत के ही नहीं बल्की एशिया के सबसे बड़े रोबोटिक सर्जन हैं। उन्होंने अब तक ढाई हजार से ज्यादा रोबोटिक सर्जरी  की है। इतना ही नहीं उन्होंने 20000 से ज्यादा जटिल कैंसर की भी सर्जरी की है। आखिर कैसे एक छोटे से गांव का लड़का एशिया का सबसे बड़ा रोबोटिक सर्जन बन गया, तो आईए जानते हैं डॉक्टर डबास की कहानी। 

 

 

 

पैतृक गांव से की पढ़ाई

डॉक्टर सुरेंद्र कुमार (Doctor success Story) डबास ग्रामीण दिल्ली से आते हैं। उन्होंने क्लास 6 से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई डबास ने जवाहर नवोदय विद्यालय से की। डॉक्टर डबास बताते हैं कि, वह बचपन में फाइटर पायलट बनना चाहते थे, लेकिन कान में कुछ दिक्कत होने के कारण उन्हें वो सपना छोड़ना पड़ा और फिर उन्होंने मेडिकल की तरफ जाने का मन बनाया।

 

 

 

घरवालों से नहीं मिली ईजाजत

डॉ सुरेंद्र कुमार डबास (Doctor success Story) के पिताजी डीटीसी में बस कंडक्टर थे, बाद में वो प्रमोट होकर कैशियर बने। उनकी तनख्वाह बेहद कम थी और घर वालों को लगता था कि मेडिकल की पढ़ाई में बहुत ज्यादा पैसे लगते हैं, जिसे डबास को ओफर्ड नहीं कर पायेंगे। डबास की बहन टीचर बन गई थी, तो घर वालों का भी सपना था कि बेटा भी टीचर बने। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था, जब डबास ने दिल्ली पीएमटी यानी मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम दिया तो उसकी अच्छी रैंक आई। डबास काे डॉक्टर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया। यहां पूरीे साल की फीस मात्र ₹800 थी।

 

 

 

रोजाना 5 घंटे लंबा सफर करते थे 

डॉक्टर डबास (Doctor success Story) का गांव दिल्ली के बहादुरगढ़ के पास है जो कॉलेज से काफी दूर था। हॉस्टल के लिए अप्लाई किया तो दिल्ली का ही होने की नाते हॉस्टल नहीं मिला। इसलिए वह रोज तीन बसों को चेंज करके कॉलेज जाया करते थे। कॉलेज का समय सुबह 8:00 बजे का था तो वो अपना घर सुबह 5:30 छोड़ दिया करते थे जिससे वो टाइम से कॉलेज पहुंच सके।

 

 

 

फर्स्ट ईयर में हो गई थी पिता की मृत्यु

डॉक्टर डबास जब एमबीबीएस के फर्स्ट ईयर में थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। डॉक्टर डबास ने कहा, ‘पिताजी का देहांत अप्रैल में हुआ और मेरा सेमेस्टर एग्जाम जून में था। एक तो 5 घंटे सफर करने की वजह से मैंने कुछ पढ़ नहीं पाया था तो पिताजी की मृत्यु से मैं एकदम से टूट गया। लेकिन डॉक्टर डबास (Doctor success Story) ने वहां से प्रेरणा ली कि, मैं अपने पिता का सपना पूरा करूंगा। फिर मैंने मन लगाकर पढ़ाई की अपना एमबीबीएस कंप्लीट किया’ ।

 

 

 

अमेरिका से ली डिग्री

एमबीबीएस कंप्लीट के बाद भी डॉक्टर डबास (Doctor success Story) ने पढ़ाई जारी रखी और 3 साल तक जर्नल सर्जन की पढ़ाई की। फिर कैंसर सर्जन की पढ़ाई कंप्लीट की, आपको बता दें की डॉक्टर डबास भारत के ऐसे पहले डॉक्टर हैं जिन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय से रोबोटिक सर्जरी की पढ़ाई की है।

Doctor success Story : बस कंडक्टर का बेटा बना एशिया का सबसे बड़ा रोबोटिक सर्जन, 20 हजार से ज्यादा कर चुके है जटिल कैंसर की सर्जरी Read More »