International Business News : भारत का व्यापार चीन और अमेरिका के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक स्तर पर भारत का रिश्ता चीन के साथ तनावपूर्ण हैं। जबकि ऐसे ही स्तर पर भारत की अमेरिका के साथ मित्रता गहरी है। वहीं पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में चीन भारत का नंबर 1 ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है। जबकि, अमेरिका पीछे छूट गया है। ग्लोबल टाइम्स ने भारत-चीन के मध्य हो रहे व्यापार और भविष्य की अनुमान को लेकर एक लेख छापा है। इस लेख का ये मुख्य उद्देश्य है कि दोनों देश अगर एक दूसरे की सहायता से आगे बढ़ें तो व्यापारिक रिश्ते और मजबूत हो सकते हैं।
बता दें कि, भारत की सीमाओं और राज्यों को अपने नक्शे में दिखाना चीन (International Business News) की पुरानी आदत रही है। दोनों देशों के एक-दूसरे के प्रति युद्ध की आशंका बनी रहती है। लेेकिन युद्धि स्तर के विवादों काे किनारे करें तो चीन भी शायद सोच रहा है कि भारत के बिना उसका गुजारा करना मुश्किल हो सकता है।
दोनों दैशों में कितने बिलियन डॉलर का ट्रेड हुआ है ?
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में दोनों देशों के बीच 118.4 बिलियन डॉलर का ट्रेड हुआ है। बता दें कि, चीन के साथ भारत का निर्यात 8.7 फीसदी तक बढ़ा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की तरफ से ये आंकड़े बीते रविवार को जारी किए गए थे। दरअसल कि, इस वित्त वर्ष से पहले के दो वित्त वर्षों (2021-22 और 2022-23) में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा पार्टनर था। क्योंकि गलवान घाटी में सैनिकों के मध्य तनाव बढ़ने के बाद भारत द्वारा कई चीनी कंपनियों पर कड़ी पाबंदी लगाने के चलते अमेरिका के साथ ट्रेड के आंकड़ों का ग्राफ उठा था।
क्या कहते है, व्यापार के ये आंकड़े?
रिपोर्ट के मुताबिक, यह व्यापार के आंकड़े डेवलपमेंट चीन और भारत के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग के अनुमान पर प्रकाश डालता है। इस दौरान अंदाजा लगाया जा रहा है कि, भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के विकास से पूरी अर्थव्यवस्था सुधार की तरफ बढ़ सकती है। एक अवधी के बाद, भारत वैश्विक फैक्ट्री बनकर चीन को तब्दील करने के प्रयास में है। यदि ग्लोबल इंडस्ट्री और वैल्यू चेन को बारिकी से देखा जाए तो समझ में आता है कि, भारत और चीन (International Business News) अलग-अलग स्थिति में ताकतवर हैं। बता दें कि, चीन पहले से मैन्युफैक्चरिंग हब है, ऐसे में भारत का मैन्युफैक्चरिंग पावर बनने का सपना एक-दूसरे के सहयोग से पूरा हो सकता है। इसमें दोनों देशों के पास अहम मौका होगा।
कैपिटल इन्टेंसिव प्रॉडक्ट्स में भारत को बल मिला
बता दें कि, भारत सर्विस सेक्टर में अव्वल है, खासतौर पर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) सेक्टर में मजबूत है। मेक इन इंडिया के साथ टेक्नोलॉजी और कैपिटल इन्टेंसिव प्रॉडक्ट्स में भारत को बल मिला है। कैपिटल इन्टेंसिव प्रॉडक्ट्स में ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग, तेल उत्पादन और रिफाइनिंग, स्टील का उत्पादन, टेलीकम्युनिकेशन्स और ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर आते हैं। ऐसे में सहयोग की राह मजबूत करने के लिए, रेलवे और एयरलाइन्स के माध्यम से चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए नए बाजार तो खोलती है।
चीनी आयात का रोल
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड की एक शोध के अनुसार, अप्रैल 2023 में पाया गया कि चीनी इम्पोर्ट से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को ताकत मिली है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में छापा गया है कि, भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अब अधिक निर्यात कर पाने में सक्षम हो रहा है।
दोनों देशों (International Business News) के बीच आपसी व्यापार प्रभावित हो सकता है। वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने चीन से 3.24 प्रतिशत अधिक आयात किया है। आयात का आंकड़ा 101.7 बिलियन डॉलर है, तो निर्यात बढ़कर 16.67 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।
चीनी कंपनियों को भारत में मिले व्यापार करने की ईजाजत
ग्लोबल टाइम्स ने अपने विश्लेषण में कुछ बिंदुओं पर प्रमुख रूप से इस बात पर बल दिया गया है कि, भारत और चीन के बीच व्यापारिक रिश्ते नए सिरे से चल रहे हैं, मगर विलंब के साथ चल रहे हैं। चीन ज्यादा निर्यात कर पा रहा है, जबकि भारत काफी कम, इस विलंब को कम करने के लिए भारत को खास प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि, चीनी कंपनियों को भारत में व्यापार करने लिए ईजाजत दे देनी चाहिए। कंपनियों के आने पर भारत में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आमतौर पर अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।
चीन और भारत व्यापार में एक-दूसरे के प्रति कैसे सहयोग कर सकते हैं ?
ग्लोबल टाइम्स (International Business News) ने अपने लेख में आगे कहा है कि, चीन की कुछ कंपनियां भारत में निवेश करने में दूर हो रही हैं। ऐसे में कंपनियां भारत की कुछ आर्थिक और व्यापार नीतियां का हवाला देकर भारत से दूर रहना चाहती हैं। इसलिए आर्थिकतौर पर भारत सरकार को विशेष नियम और व्यापार के लिए एक अच्छा माहौल बनाना चाहिए। ऐसे में भारत को चीनी कंपनियों से अधिक निवेश पाने में सहायता मिल सकेगी। साथ ही, चीन धीरे-धीरे अधिक भारतीय उत्पादों को अपने बाजारों में बेचने की इजाजत दे सकता है, खासकर खेती और सर्विस सेक्टर में जैसे दूसरे देशों में भेजे जाते हैं।