कबड्डी के इतिहास से लेकर बड़े खिलाड़ियों की पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी
Satpal pega kabaddi : प्रदेश में कहीं भी सर्कल कबड्डी का जिक्र हो और और सतपाल पेगां का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। जी हां पेशे से अध्यापक पेगां गांव निवासी सतपाल को हरियाणा के सभी गांवों का इतिहास जुबानी याद है। पिछले 15 वर्षों से सतपाल पेगां सर्कल कबड्डी की राष्ट्रीय और राज्य प्रतियोगिताओं में कमेंट्री करते आ रहे हैं, इसके चलते उन्हें कबड्डी के बड़े खिलाड़ियों और उनकी पृष्ठभूमि की भी पूरी जानकारी है। सतबीर सिंह टांग से दिव्यांग हैं लेकिन अपनी दिव्यांगता को कभी भी आड़े नहीं आने दिया। सतपाल पेगां सर्कल कबड्डी में लाइव कमेंट्री करते हैं।
जहां भी बड़ी कबड्डी प्रतियोगिता होती है, वहां कमेंट्री के लिए सतपाल पेगां को बुलाया जाता है। सतपाल पेगां की कमेंट्री बड़ी दिलचस्प होती है, क्योंकि कमेंट्री के दौरान वह हंसी-ठहाके की बात तो सुनाते ही हैं, साथ ही जिस गांव में टूर्नामेंट होती है, उस गांव की विशेषता, उसका इतिहास, वहां के स्वतंत्रता सेनानी, वहां के खिलाड़ी और दूसरी तमाम दिलचस्प चीजों को दर्शकों के सामने रखते हैं। साथ ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्त प्रदेश, पौधारोपण, खाने का व्यर्थ नहीं छोड़ने, एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड को रास्ता देने बारे भी नारे देकर लोगों को जागरूक करते हैं।
खिलाड़ी से लेकर उसके परिवार तक की जानकारी उंगलियों पर हरियाणा और पंजाब में कबड्डी का कोई रेडर हो या कैचर, जो कई प्रतियोगिताएं खेल चुका हो, उस खिलाड़ी के नाम से लेकर उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, माता-पिता और कोच के नाम सतपाल पेगां को याद रहते हैं।
यही नहीं, उस खिलाड़ी ने कब बढ़िया रेड या कैच लगाई थी, कब बड़ा ईनाम जीता था, कब बुलेट या गाड़ी जीती थी, यह सब सतपाल पेगां को याद रहता है, जिसका जिक्र कर के वह कमेंट्री में करके दर्शकों की दिलचस्पी और खिलाड़ी के उत्साह को और बढ़ा देते हैं।
दिव्यांगता को नहीं बनने दिया बाधा
सतपाल पेगां को बचपन से ही कुश्ती का शौक था। पेगां गांव के जाने-माने पहलवान रिछपाल शर्मा से उन्हें खेलने की प्रेरणा मिली और टांग से दिव्यांग होने के बावजूद उसने कबड्डी खेलना शुरू कर दिया। पहले गांव में छोटी कबड्डी, उसके बाद ब्लाक स्तर और फिर जिला स्तर पर सतपाल ने कबड्डी खेली। 1998 में सतपाल पेगां को स्कूल में डीपीई की नौकरी मिल गई। 2006 में वह खोखरी गांव आ गए, जहां से ग्रामीणों का खूब सहयोग मिला। उसके बाद उन्हाेंने कमेंट्री शुरू कर दी। गांवों के इतिहास के बारे में पढ़ा, पुस्तकें पढ़ी और खेल की जानकारी हासिल की। सतपाल पेगां ने अपने गांव के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए खुद के खेत को खाली छोड़ दिया और वहां बच्चों को कबड्डी और कुश्ती के गुर सिखाए।
सतपाल पेगां बताते हैं कि शुरूआत में जहां भी कबड्डी का मैच होता था, वहां के बुजुर्ग, सरपंच या दूसरे लोगों से गांव के इतिहास और दूसरी जानकारी जुटा लेते थे। उसके बाद कमेंट्री के दौरान खिलाड़ियों, स्वतंत्रता सेनानियों और इतिहस के बारे में लोगों को जानकारी देने का काम करते थे। धीरे-धीरे तजुर्बा बढ़ता गया और अब उन्हें लगभग सभी गांवाें के इतिहास और बड़े कबड्डी खिलाड़ियों के बारे में पता है। प्रदेश भर के एक हजार से ज्यादा सरपंच उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। कहीं पर भी जनसभा हो, धार्मिक कार्यक्रम हो तो मंच संचालन के लिए उन्हें बुलाया जाता है। फिलहाल वह किशनपुरा के सरकारी स्कूल में हेडमास्टर हैं।