Self help group : घर की दहलीज से निकल, कैंटीन खोल और टिफिन सर्विस शुरू कर आत्मनिर्भर बनी 50 से ज्यादा महिलाएं
Self help group Jind : महिलाओं का एक रूप या उनकी एक भूमिका अन्नपूर्णा की भी होती है। इस भूमिका को महिलाओं के एक समूह ने रेखांकित ही नहीं किया वरन व्यापक अर्थ दिया है। जींद जिले में ग्रामीण क्षेत्र की 50 से अधिक महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर कैंटीन चलाकर और टिफिन वाली बन कर लोगों का पेट भर रही हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने पर इन्होंने अपने घर की दहलीज पार की और फिर स्वयं सहायता समूह बनाकर कैंटीन खोला। इसके बाद टिफिन सर्विस शुरू कर करीब 300 लोगों को घर जैसा भोजन उपलब्ध करवा रही हैं। ये महिलाएं खुद भोजन बनाती हैं और फिर खुद ही ग्राहक तक खाना पहुंचाने का काम करती हैं। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर (self help group jind) सरकार से लोन लेकर स्वरोजगार स्थापित किया। अब इनका रोजगार अच्छे तरीके से चलने लगा है, जिससे इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।
आत्मनिर्भर (self help group jind) बनने वाली महिलाओं के काम-काज काे चलाने वाली बरसोला गांव निवासी पिंकी और रामराय निवासी सरिता बताती हैं कि पांच से छह साल पहले उन्होंने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर लोन लिया और खुद का काम शुरू करने के लिए प्रशिक्षण लिया। इसके बाद धीरे-धीरे दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को साथ जोड़ा। जिन महिलाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, उन महिलाओं को साथ लेकर खुद का रोजगार स्थापित किया।
पिंकी और सरीता के निर्देशन में जींद के राजकीय कालेज, राजकीय आइटीआइ और नई अनाज मंडी में अटल कैंटीन चलाई जा रही हैं, जिन पर 50 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही है। इसके अलावा जींद में पुराने बस अड्डे के सामने की श्योराण कालोनी में टिफिन सर्विस भी शुरू की हुई है। यहां खाना बनाने से लेकर टिफिन वितरित करने का काम स्वयं महिलाएं कर रही हैं। हर कैंटीन पर पांच से सात महिलाएं काम करती हैं। कैंटीन से होने वाली कमाई से ये महिलाएं कैंटीन का किराया, लोन की किस्त के अलावा 10 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह की बचत भी कर रही हैं।
चार बच्चों की परवरिश के लिए शुरू किया काम : पिंकी
बरसोला गांव निवासी पिंकी ने बताया कि उस पर चार बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी थी और उस समय घर के आर्थिक हालात कमजोर थे, इसलिए उसने दहलीज पार कर खुद का रोजगार करने की सोची। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर लोन लिया और काम सीखा। दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को साथ लेकर काम शुरू किया। अब वह कैंटीन और टिफिन सर्विस के काम का मैनेजमेंट करती है कि किस प्रकार से आय बढ़ाई जा सकती है। 1100 रुपये प्रतिमाह की आय के साथ उसने शुरूआत की थी, जो आज 20 हजार रुपये प्रतिमाह तक पहुंच गई है।
300 से ज्यादा टिफिन जा रहे, महिलाएं खुद करती हैं वितरित : सरिता
रामराय गांव की सरिता बताती हैं कि रोजाना 300 से ज्यादा टिफिन का वितरण हो रहा है। मात्र 50 रुपये में खाना तैयार कर पैकिंग करती हैं और महिलाएं खुद ही इसे वितरित करके आती हैं। इसके लिए उन्होंने ई-रिक्शा और स्कूटी ली हुई है। सरिता बताती हैं कि आसपास के गांवों से महिलाएं उनके पास काम करने आती हैं। अब उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। सात साल पहले तक बच्चे छोटे थे और आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, इसलिए सिलाई करती थी लेकिन 2017 में उसने स्वरोजगार की सोची और स्वयं सहायता समूह (self help group jind) से जुड़कर आगे बढ़ती चली गई। अब उनका सर्कल बढ़ने लगा है।