Life Style

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शाम 5 बजे बाद ही कर पाएंगे लक्ष्मी पूजा जानिए पूरी विधि और पूजन के मुहूर्त

आज दीपावली है और इस बार जो संयोग बन रहे हैं, उससे यह दीवाली बेहद शुभकारी साबित होने वाली है। कार्तिक माह की अमावस्या भी आज शाम से शुरू होगी, जो कल शाम 5 बजे तक जारी रहेगी। इसलिए आज दिन में दीपावली की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त नहीं है। शाम 5 बजे बाद ही दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है। कल 25 तारीख को सूर्य ग्रहण भी है। आज शाम और रात को मुहूर्त रहेंगे। आपको बता दें कि करीब 2 हजार वर्ष बाद इस बार दीपावली पर बुध, गुरू, शुक्र और शनि अपनी ही राशि में रहेंगे। जिसकारण मां लक्ष्मी की पूजा के समय पांच राजयोग बन रहे हैं, जो सुख शांति और वृद्धि का संकेत दे रहे हैं। ज्योतिषियों ने इस दिन पूजा पाठ के लिए विधियां बताई हैं।

दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा ऐसे करें: लौटे में गंगा जल जरूर लें। कुशा और फूल से खुद पर और अन्य परिवारजनों पर जल छिड़कें। फिर सभी को तिलक करें। इसके बाद प्रथम गणेश जी, फिर क्लश को तिलक करें और फिर सभी देवी-देवताओं व बाद में मां लक्ष्मी की पूजा करें।
बहीखाता पूजा: पूजा सामग्री व फूल लेकर मां सरस्वती का ध्यान करें, फिर ऊँ सरस्वत्यै नम: का जाप करें। मंत्र जाप करते हुए ही बहीखाता पर पूजा करें।

मां लक्ष्मी की इन तस्वीरों की ही करें पूजा

कार्तिक अमावस्या पर महालक्ष्मी की मूर्ति या फोटो की पूजा करने की परंपरा है। बाजार में लक्ष्मी जी की अलग-अलग फोटो मिलती हैं। पूजा के लिए देवी की कैसी फोटो सबसे अच्छी होती है, इस बारे में ज्योतिषियों का जो मानना है, वह पढि़ए। पूजा के लिए ऐसी तस्वीर खरीदें, जिसमें लक्ष्मी मां कमल के आसन पर विराजमान हों, उनके साथ एरावत हाथी भी हो तो पूजा के लिए फोटो सबसे उत्तम रहती है। तस्वीर में माता के दोनों ओर हाथी बहते पानी में खड़े हैं, सिक्कों की बारिश कर रहे हैं। सूंड में सोने का कलश लिए हुए हैं। यह फोटो भी उत्तम है, जिसमें लक्ष्मी जी और भगवान विष्णु जी गरुड़ पर विराजित हैं और मां लक्ष्मी विष्णु जी के पैरों की तरफ बैठी हो। तीसरी फोटो यह हो सकती है, जिसमें लक्ष्मी माता के साथ गणेश जी और मां सरस्वती भी हों, मां लक्ष्मी दोनों हाथों से धन बरसा रही हों। मां लक्ष्मी की ऐसी तस्वीरों की पूजा से बचना चाहिए, जिनमें उनके पैर दिख रहे हों या वे खड़ी मुद्रा में हों, उल्लू पर सवार मां की पूजा नहीं करनी चाहिए, कभी भी अकेली मां की फोटो की पूजा न करें।

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आखिर क्या बला है ग्रीन क्रैकर्स, क्या यह साधारण पटाखों से कम प्रदूषण करते हैं, जानिए सबकुछ

दीपावली का पर्व आ रहा है। इस बार सरकार ने पटाखों को बैन कर दिया है, सिर्फ ग्रीन पटाखों को ही बजाने की छूट दी गई है। अब लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर यह ग्रीन पटाखे हैं क्या? क्या ये पटाखे धुआं नहीं छोड़ते, या इन पटाखों में विस्फोटक पदार्थ नहीं होते, आखिर इनको बजाने से कैसे प्रदूषण रुकेगा? तो चलिए यह पूरी खबर जरूर पढ़ें, आपको आपके सवालों का जवाब मिल जाएगा। साथ ही खबर में आप यह भी जान पाएंगे कि आखिर पटाखों से रंग बिरंगी रोशनी कैसे निकलती है। पहले तो आपको बता दें कि अगर आप सोच रहे हैं कि ग्रीन पटाखे वातावरण फ्रेंडली हैं तो ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। ये पटाखे भी प्रदूषण करते हैं, धुआं छोड़ते हैं, दिखने में और चलने में ये बिल्कुल दूसरे पटाखों जैसे ही हैं, लेकिन इनमें आम पटाखो जैसा खतरनाक प्रदूषण या केमिकल नहीं होता। फतेहाबाद में बिक रहे पटाखों पर लिखा तो ग्रीन है, लेकिन अंदर क्या है राम जाने? जानकारों का कहना है कि सामान्य पटाखों की तरह यह भी कानफोडू हैं, हवा में भी प्रदूषण होगा। यानि ध्वनि और वायु प्रदूषण तो होगा ही, लेकिन नुकसानदायक कम होंगे।

नुकसानदायक तो है ही ना फिर ग्रीन क्रैकर्स क्यों कहते हैं

इन पटाखों के बजने से हवा में पाॢटकुलर मैटर यानि पीएम 30 से 40 प्रतिशत कमी आती है, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी कम होती है। तय मानकों पर पूरा होने पर इन पटाखों को ग्रीन क्रैकर्स कहा जाता है। सबसे पहले सीएसआईआर दिल्ली ने ग्रीन पटाखों का आइडिया दिया और तब से इन पटाखों का इस्तेमाल केवल और केवल हमारे ही देश में हो रहा है। दुनियाभर में अभी कहीं ओर ये पटाखे नहीं चल रहे। अब ध्यान रखें यदि आपको कोई चाइनीज पटाखे ग्रीन कहकर बेचे तो मत लें, क्योंकि वे पटाखे ग्रीन क्रैकर्स नहीं हैं। हमारे देश में दीपावली, दशहरा, विवाह शादि आदि पर पटाखे बजाकर खुशी मनाई जाती है, लेकिन हमेशा प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कोरोनाकाल के बाद से लगातार दीपावली पर पटाखों पर बैन लगता आ रहा है, जिससे पर्व भी फीके नजर आते हैं। इसलिए अब इन पटाखों का फार्मूला निकाला गया है।

सामान्य और ग्रीन क्रैकर्स में अंतर

जो आम तौर पर पटाखे हम बजाते रहे हैं, उनमें बेरियम नाइट्रेट होता है। यह इंसान की श्वास नली के जरिये शहर में पहुंच जाए तो यह जहर का काम करती है। इससे डायरिया, पेट दर्द, सांस लेने में परेशानी, दिल की धड़कन बढऩे जैसी समस्याएं हो जाती हैं। जबकि ग्रीन क्रैकर्स में बेरियम नाइट्रेट इस्तेमाल नहीं होता। इनमें पोटेशियम नाइट्रेट डाला जाता है। किसी भी केमिकल का नुकसान होता ही है, लेकिन इस केमिकल का नुकसान पहले वाले से कमतर होता है। नए पटाखों में पहले की तरह सल्फर और एल्युमीनियम पाऊडर भी प्रयोग होता है, लेकिन मात्रा कम होती है।  ध्वनि प्रदूषण की बात करें तो आम पटाखे 160 से 200 डेसिबल तक का शोर करते हैं, जबकि ग्रीन पटाखों में यह 100 से 130 के बीच रहता है।

पटाखों के कौन से केमिकल से क्या नुकसार

पटाखों में कई तरह के हानिकारक केमिकल होते हैं। जिनका सीधा-सीधा शरीर पर प्रभाव पड़ता है। इसमें सीसा होता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव होता है। कॉपर से श्वास नली में परेशानी होती है। ङ्क्षजक से उल्टी होती है। सोडियम से स्किन संबंधी दिक्कतें होती हैं, केडियम से एनीमिया और किडनी परेशानी हो सकती है।  मैग्नीशियम से मेटल फ्यूम फीवर होता है। नाइट्रेट से चिड़चिड़ापन हो सकता है। बेरियम नाइट्रेट के हानिकारक प्रभाव आपको पहले ही बता दिए हैं। वैसे सभी प्रकार के पटाखों से परेशानी हो सकती है। पटाखों से बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, गंभीर रूप से बीमार लोगों या अस्थमा पीडि़त लोगों को परेशानी हो सकती है। दिल के रोगियों को बेचैनी परेशानी हो सकती है। हमारे कान 60 डेसिबल की साऊंड नॉर्मल सुन सकते हैं। लेकिन पटाखों से 150 डेसिबल से अधिक आवाज निकलती है। जो बहरा बना सकती है। खासकर छोटे बच्चों के कान के परदे फट सकते हैं। रंग बिरंगी रोशनी से छोटी बच्चों की आंखें चौंधिया जाती हैं। जिससे आंखों पर प्रभाव पड़ता है।

रंग बिरंगे कैसे जलते हैं पटाखे

आप भी यह देखकर अकसर हैरान होते होंगे कि पटाखों में ऐसा क्या होता है कि उनमें इस प्रकार रंगीन रोशनियां निकलती हैं। कोई पटाखा ऊपर जाकर लाल होता है तो कोई नीला, हरा, पीला। तो जानिए, पटाखों में शामिल कई प्रकार के मेटल से यह रंग निकलते हैं। मैग्नीशियम एल्युमीनियम, टाइटेनियम से सफेद रंग निकलता है। स्ट्रांशियम से लाल रंग निकलता है। कैल्शियम से संतरा रंग, सोडियम से पीला, बेरियम से हरा, कॉपर से नीला और स्ट्रांशियम, कैल्शियम से बैंगनी कलर निकलता है। तो यह सारी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, लगी हो तो इस पोस्ट को शेयर करते रहें।

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दीवाली से अगले ही दिन लगेगा इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण

इस वर्ष साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर को होगा। धर्म के नजरिये से यह ग्रहण खास रहने वाला है। दीपावली के अगले ही दिन यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा, सूर्य ग्रहण के कारण गोर्वधन पूजा अब एक दिन के लिए टल गई है। देश के कई जगहों पर यह ग्रहण देखने को मिलेगा। इस साल का यह दूसरा सूर्य ग्रहण है, पिछला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को था, जो भारत में नहीं देखा गया था। यह ग्रहण उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों यानि हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल सहित सभी उत्तरी राज्यों में बेहतर ढंग से दिखेगा, बाकी जगहों पर सूर्य अस्त होने के चलते यह नहीं दिखेगा। जबकि दुनियाभर के कई अन्य देशों में यह दिखेगा। पूर्वी और मध्य प्रदेश से आगे के दक्षिणी इलाकों में यह ग्रहण नहीं दिखेगा।

 

ग्रहण शाम साढ़े 4 बजे चरम पर होगा। 25 तारीख को इस दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी सीधी रेखा में रहेंगे। जिस कारण चंद्रमा कुछ देर के लिए आंशिक रूप से सूर्य को ढक लेगा और ग्रहण दिखेगा। देश में करीब-करीब आधा हिस्सा सूर्य का ढका दिखेगा। नई दिल्ली के समयानुसार शाम करीब 4 बजकर 29 मिनट पर ग्रहण शुरू होकर सूर्य अस्त के साथ ही ग्रहण 6 बजकर 9 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।

इस बार दीपावली 24 तारीख को है और ग्रहण के कारण गोवर्धन पूजन 25 की बजाए अब 26 तारीख को होगी और भाई दूज 27 को मनाई जााएगी। धनतेरस 22 अक्टूबर को होगी। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो 25 तारीख को शाम साढ़े 4 बजे लगने वाले ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले यानि सुबह 4 बजे ही शुरू हो जाएगा। यानि दीपावली की रात के बाद से ही ग्रहण का सूतक शुरू हो जाएगा। अत: धर्म की दृष्टि से ग्रहण को मानी जाने वाली सभी सावधानियां इस दिन आप पूरी कर सकते हैं।

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अलर्ट: कहीं बहरे न हो जाएं बच्चे, खुद पर भी लागू करें यह सख्ती

भागदौड़ भरी जिंदगी में आजकल हर कोई अपने सेहत के प्रति बेहद लापरवाह नजर आते हैं। टेक्नोलॉजी इतनी प्रभावशाली हो गई है कि हम एक तरह से उसके आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं। बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण लोगों खासकर बच्चों के आंखों पर चश्मे चढ़ गए हैं तो वहीं अब ज्यादा हेडफोन और इयरफोन का इस्तेमाल किए जाने के कारण बहरेपन की समस्याएं भी बढ़ने लगी हैं। एक रिसर्च के अनुसार पिछली पीढ़ी की तुलना में इस पीढ़ी ने बहरापन ज्यादा तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसका सीधा-सीधा कारण ईयर फोन या हेडफोन का इस्तेमाल माना जा रहा है क्योंकि अधिकतर लोग अपने काम के दौरान एकाग्रता के लिए हेडफोन या ईयर फोन इस्तेमाल करते देखे जाते हैं तो वही बच्चे भी अपनी पढ़ाई के लिए या फिर गेमिंग के लिए हेडफोन लगाते हैं।

 

हेडफोन में आवाज तेज होने के कारण इसका सीधा सीधा प्रभाव हमारे कानों पर पड़ता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हेडफोंस के दौरान आवाज एक नियमित स्तर पर हो तो कुछ हद तक इससे बचा जा सकता है। आवाज का स्तर कितना हो यह जानने के लिए एक फार्मूला भी विशेषज्ञ बताते हैं। उनका कहना है कि बच्चा या कोई भी हेडफोन यूज करने वाले को लगभग एक मीटर की दूरी पर बैठाएं और उनसे बात करें यदि वह ढंग से सुन पा रहे हैं तो आवाज का लेवल सही है, अगर उन्हें सुनने में परेशानी है तो समझे की आवाज का लेवल ज्यादा है उसे कम करने की जरूरत है।

 

अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ ने वर्ष 1998 में हेडफोन सेफ्टी सीमा निर्धारित की थी। इसके अनुसार 85 डेसीबल से अधिक ऊंची आवाज पर 8 घंटे से ज्यादा हेडफोन या ईयर फोन इस्तेमाल करना सेहत के लिए खतरनाक माना गया और यदि 108 डेसीबल की आवाज 3 मिनट से ज्यादा सुनी जाए तो यह बेहद खतरनाक होता है।

 

आपको बता दें कि रोजाना घंटों तक कानों में ईयर फोन ठूसे रहने या सिर पर हेडफोन लगाकर गाने या अन्य कोई भी सामग्री सुनने पर सिर्फ हमारी सुनने की क्षमता पर ही असर नहीं होता बल्कि इससे चक्कर आने, कान में मोम जैसा पदार्थ जमने, संक्रमण होने, और कानों में तेज आवाज की परमानेंट सेंसटिविटी बन जाने की दिक्कतें भी आ सकती हैं।

 

इसलिए जितना महत्वपूर्ण स्क्रीन टाइम कम करके आंखों को बचाना है उतना ही महत्वपूर्ण कम से कम ईयर फोन और हेडफोन का इस्तेमाल कर अपने कानों को बचाना भी आज के समय में जरूरी हो गया है।

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ईरान से भारत पहुंचा और आज हर घर की थाली की शान है समोसा

घर में कोई मेहमान आए और समोसे न मंगवाए जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। देशभर में समोसा हमारी मेहमान नवाजी की थाली की शान होता है। हर छोटी मोटी पार्टी में भी कोल्ड ड्रिंक्स के साथ समोसा परोसा जाता है, क्योंकि समोसा पार्टी बजट में भी हो जाती है। कभी बरसात आ जाए तो हमारे जेहन में पकौड़े, जलेबी या फिर समोसे ही आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि समोसे को लेकर जो दावा किया जाता है, उसके अनुसार समोसा भारतीय खाने की परंपरा में शामिल ही नहीं था। ईरान से यह समोसा भारत आया। 5 सितंबर को समोसा डे है, क्योंकि 2013 में ब्रिटिश काऊंसिल ने समोसे को दुनिया का पसंदीदा स्नैक्स मानकर 5 सितंबर को समोसा दिवस मनाने की घोषणा की। आज जानते हैं चटपटे समोसे के इतिहास के बारे में…

हर दिन समोसे की लागत

भारत में चटपटे व मसालेदार समोसे बड़े चाव से खाया जाता है। फास्टफूड से बेहतर माने जाने वाले समोसे को लगभग 6 करोड़ लोग हर रोज खाते हैं। स्विगी के आंकड़ों पर गौर करें तो 1 मिनट में 115 ऑर्डर रोज मिलते हैं। 2021 में 50 लाख ऑर्डर समोसे हुए थे। यह मात्र एक कंपनी का ही डेटा है। अन्य कंपनियां का डेटा उपलब्ध नहीं है। और लोग खुद मार्केट में जाकर समोसा खरीदते या खाते हैं, वो अलग है। उनका आंकड़ा ऑनलाइन डिलवरी से कहीं ज्यादा हो सकता है। देशभर में समोसे का सालाना 42 लाख करोड़ रुपये का बिजनेस होता है, क्योंकि स्नैक्स के तौर पर समोसे की बहुत डिमांड है।

भारत के हर कोने में अलग-अलग नाम

समोसे का नाम दुनियाभर के देशों में अलग-अलग है, भारत में ही कई नामों से समोसा जाना जाता है। उत्तर भारतीय राज्यों में समोसा को समोसा ही बोला जाता है, जबकि तमिलनाडू में इसे सोमासी कहा जाता है, हैदराबाद में लुखमी, तो ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तथा आसपास राज्यों में इसे सिंघाड़ा कहा जाता है, क्योंकि यह सिंघाड़े जैसी तिकोनी शेप का होता है। दुनिया की बात करें तो बांग्लादेश में शिंगारा, इथोपिया, तजाकिस्तान में समबूसा, नेपाल में सिंगास, पाकिस्तान में समोसा, बर्मा में समूजा, इंडोनेशिया में समोसा, सोमालिया में समबूस, दक्षिण अफ्रीका में समूंसाज, पुर्तगाल में चालूवास कहते हैं।

वेज और नॉनवेज दोनों प्रकार के होते हैं समोसे

वैसे तो हमारे देश में वेज समोसे का ही प्रचलन है, लेकिन बहुत से इलाकों में नॉनवेज समोसे भी होते हैं, जिनमें आलू की जगह भुने हुए चिकन, मटन या अंडा आदि की फिलिंग की जाती है। अगर दुनिया की बात करें तो इरान, थाईलंैड, बरमा, बंगाल, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका, इथोपिया सहित कई देशों में समोसे खाए जाते हैं, लेकिन नाम अनेक होते हैं, जहां भारतवंशी नहीं हैं, वहां अधिकतर नॉनवेज समोसे ही खाए जाते हैं, जिनमें गोश्त भरा होता है। 13वीं-14वीं शताब्दी के आसपास या इससे पहले मिडिल ईस्ट के आक्रांताओं के साथ उनके रसोइयों के जरिये ईरान का सामसा यानि समोसा भारत पहुंचा था। अमीर खुसरो ने भी लिखा है कि शहंशाह समोसा बहुत चाव से खाते थे, जिसमें गोश्त और प्याज भरा होता था। इब्नबतूता ने भी ऐसे विदेशी आक्रमणकारी के बारे में लिखा है कि वे गोश्त, ड्राइ फ्रूट्स से भरे समोसे खाते थे। अकबर के समय ‘आइने अकबरीÓ में ईरानी समोसे को बनाने की रेसिपी का जिक्र है। लेकिन इसमें समोसे को सनबूशाह संबोाधित किया गया है।

समोसे का पहला जिक्र

9वीं शताब्दी में सबसे पहले एक फारसी कवि इशाक-अल-मौसिली की कविता में समोसे का जिक्र देखने को मिलता है। उन्होंने अपनी कविता में सनबुसज की खूब तारीफ की और बताया है कि इरान में इसे खूब खाया जाता था। समोसे को ही फारसी में सनबुसक कहा गया, जो कि फारसी भाषा के शब्द सनबोसाग से निकला है। मुगलों के समय भारत में जब समोसा आया तो इसमें आम लोगों ने आलू भरना शुरू कर दिया। अब आलू भी भारत का नहीं है। पुर्तगाली जब गोवा पहुंचे थे तो वे अपने साथ आलू लाए थे, जा कि दक्षिणी अमेरिका में उगाया जाता था। इसके बाद आलू समोसे का ही हो गया और अब आलू बिना समोसा की कल्पना नहीं की जा सकती, प्रयोग जरूर होते हैं, लेकिन आलू वाला समोसा ही ज्यादा खाया जाता है।

फास्टफूड का चलन, लेकिन समोसा बेहतर

आज भारत में भी फास्टफूड का चलन चल रहा है। पिज्जा, बर्गर, मोमोज आदि काफी शौक से खाए जाते हैं, लेकिन समोसा अपनी अलग ही डिमांड व पहचान रखता है। रिसर्च के अनुसार भी समोसा सभी फास्ट फूड से सेहत के लिए बेहतर है, क्योंकि इसमें सादे मसाले आदि ही यूज होते हैं, फास्ट फूड की तरह हानिकारक प्रिजर्वेटिव, एसिडिटी रेगुलेटर आदि यूज नहीं होते।

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बंदर नहीं मछलियां हैं इंसानों की पूर्वज ! पढि़ए यह रिसर्च रिपोर्ट

ऐसा माना जाता है कि धरती पर बंदर मानव जाति के पूर्वज हैं। लाखों वर्षों के विकास के बाद वानर से ही इंसान बनता गया। लेकिन साइंस द्वारा अब एक नया दावा किया जा रहा है कि बंदर इंसान के पूर्वज नहीं बल्कि असली पूर्वज मछली थी। इंसान को दांत और जबड़े मछलियों से मिले हैं। यह दावा 40 करोड़ साल पहले की मछलियों के मिले जीवाश्म (फॉसिल) पर रिसर्च के बाद किया जा रहा है। वोट पोल कर अपनी राय जरूर दें  

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आपने भी देखा होगा कि शार्क जैसी मछलियों के बड़े-बड़े नुकीले दांत होते हैं। अब जो करोड़ों वर्ष पुरानी मछलियों के फॉसिल मिले हैं, उनमें रीढ़ की हड्डी व जबड़े और दांत भी मिले हैं। अब वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हो सकता है जीवों में जबड़ों के विकास की शुरूआत यहीं से हुई हो। इवोल्यूशन के दौरान यह मछलियां पानी से बाहर धरती पर आई और फिर जीवों में दांतों व जबड़ों का विकास शुरू हुआ। आज इंसानों और बहुत से जानवारों के पास चबाने के लिए दांत और जबड़े हैं।

चीन में मिले मछलियों के जीवाश्म

40 करोड़ वर्ष से पुराने मछलियों के ये जीवाश्म दक्षिण चीन में मिले हैं। इसकी एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने पांच प्रजातियों की मछलियों के फॉसिल खोजे हैं, जिनमें एक मछली का फॉसिल 43.6 करोड़ साल पुराना तो तीन मछलियों के फॉसिल 43.9 करोड़ साल पुराने हैं। इन पर जब रिसर्च हुई तो इन मछलियों के पास रीढ़ की हड्डी और जबड़े व दांत मिले। यह मछलियां 20 के आसपास हैं और इनकी लंबाई करीब डेढ़ इंच है। यह शार्क जैसी मछली का जीवाश्म है। कहा जा सकता है कि यह आज की शार्क की पूर्वज रही होगी। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि मछलियां पानी से बाहर आई होंगी और उसी से स्तनधारी जीव, पक्षी, इंसान व अन्य जानवरों में इनका विकास हुआ होगा।

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दिल की बात: समय पर सीपीआर दें तो बचाई जा सकती है मरीज की जान

दिल के रोग सबसे अब बहुत आम होने लगे हैं और सबसे ज्यादा मौतें दिल का दौरा पडऩे से हो रही हैं। लेकिन हम अपने दिल के प्रति तो लापरवाह है हीं, लेकिन हम दिल के दौरा पडऩे पर भी मरीज के प्रति लापरवाही बरतते हैं। इस समय देश में 40 वर्ष के आसपास की आयु के लोग भी हृदयाघात की चपेट में आ रहे हैं। बड़े अस्पतालों में 10 प्रतिशत केस कम आयु के ही आ रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि दिल का दौरा पडऩे पर 10 लोगों से 4 लोगों की जान बचाई जा सकती है, यदि आसपास मौजूद इंसान उन्हें समय पर सीपीआर यानि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन दे दे। हाल ही में बेहद मशहूर बॉलीवुड सिंगर केके की एक कसंर्ट के दौरान हृदयाघात से जान चली गई। लेकिन शायद ही आप जानते हों कि उनकी जान बचाई जा सकती थी।

पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक का कहना है कि उनकी बाइ्रं तरफ की मेने कोरोनरी में 80 प्रतिशत ब्लॉकेज था, जबकि बाकी धमनियों में छोटे ब्लॉकेज थे। यदि उन्हें तुरंत सीपीआर दिया गया होता तो वे बच जाते। वहीं एक वरिष्ठ प्रोफेसर आदित्य कपूर का भी दावा है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भी बचाया जा सकता था, अगर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, शिलाँग के ऑडियंस में से किसी एक ने भी उन्हें सीपीआर दिया होता। हाल ही में चेन्नई एयरपोर्ट पर एक सीआईएसएफ जवान ने एक यात्री को दिल का दौरा पडऩे पर सीपीआर देकर उनकी जान बचा ली थी। आज विश्व हृदय दिवस है, तो जानिए सीपीआर के बारे में और दूसरों को भी जागरूक करें।

आखिर क्या होता है सीपीआर

सीपीआर एक जिंदगी बचाने की तकनीक है। हार्ट अटैक आने पर इंसान की धड़कनें बंद होने लगती हैं। अस्पताल ले जाने तक वह दम तोड़ देता है। यदि इस स्थिति में मरीज को जमीन पर सीधा लेटाकर, उनके हाथ पांव सीधे रखकर कोई इंसान ऊपर से उनकी छाती पर दबाव दे तो मरीज की सांसें चलती रहती हैं। इसे सीपीआर कहते हैं। मुंंह से भी सीपीआर दी जा सकती है। बच्चों के मामले में हलका प्रेस करना होता है। सीपीआर देने वाले शख्स को भी अपने बाजू सीधे रखने होते हैं। केवल हृदयाघात ही नहीं बेहोशी के समय यदि कोई सांस न ले पाए, दुर्घटना के समय यदि किसी को सांस न आए या फिर पानी में डूबे इंसान को भी इसी प्रकार सीपीआर देकर बचाया जा सकता है। कम से कम उन्हें चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होनेे तक तो बचाया ही जा सकता है। यह भी ध्यान दें कि सीपीआर देते समय भी देर न करें, सीपीआर देते दौरान ही मरीज को अस्पताल ले जाने की व्यवस्थाएं भी होती रहनी चाहिए।

सीपीआर से होगा क्या

सीपीआर देने से अचेत हो चुके व्यक्ति को सांस लेने में सहायता मिलती है। जिससे ब्रेन में खून का सर्कुलेशन चलता रहता है। सीपीआर देने से 10 मामलों में 4 की जान बचाई जा सकती है।

भारत में लोग अंजान

आपको जानकर हैरानी होगी कि लाइफ सेविंग इस तकनीक को जानने में भारत बेहद पिछड़ा हुआ है। यदि कोई हृदयाघात, दुर्घटना, बेहोशी या पानी डूबने की स्थिति में अचेत है तो आसपास के लोगों को या तो इस बारे पता ही नहीं, या फिर अगर पता है तो डर के मारे वह सीपीआर करता नहीं। होता यह है कि लोग मरीज के आसपास भीड़ बनाकर इकट्ठे हो जाते हैं और तब तक देर हो चुकी होती है। भारत में मात्र 2 फीसदी लोगों को ही सीपीआर देना आता है। जबकि अमेरिका में 20 प्रतिशत लोग सीपीआर देने में एक्सपर्ट हैं।

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धरती बचाने का बिग एक्सपेरीमेंट सफल, उल्का से टकराया गया यान

न्यूयॉर्क। आपने हमेशा ऐसी खबरें सुनी होंगी कि कोई उल्का पिंड बहुत तेजी से धरती की ओर बढ़ रही है और धरती के बिल्कुल करीब से होकर गुजरेगी। बहुत बार ऐसी खगोलीय गतिविधियों में उल्का पिंडों के धरती पर गिरने की चेतावनी भी जारी होती है। लेकिन भविष्य में कोई भी एस्टेरॉयड धरती से ना टकराए, इसके लिए नासा NASA ने प्रोजैक्ट शुरू कर दिया है। प्रोजैक्ट का पहला मिशन नासा ने कामयाब भी कर लिया है। आज पहली बार इंसान के द्वारा बनाया गया यान एक उल्का पिंड asteroid Dimporphos से टकराया गया। यह टक्कर अमेरिकी समय 26 सितंबर शाम 7 बजकर 14 मिनट पर हुई, उस समय भारत में 27 सितंबर मंगलवार की सुबह 4 बजकर 44 मिनट थे। इस घटना की वीडियो आप पोस्ट के अंत में दिए लिंक पर देख सकते हैं।

जब टक्कर हुई, तब उल्का पिंड की रफ्तार 22.5 हजार किलोमीटर प्रति घंटा थी। नासा के वैज्ञानिकों ने इस घटना का एक वीडियो भी जारी किया है, जिसमें दिख रहा है कि यान की तरफ एक उल्का पिंड आ रहा है और फिर टक्कर होती है। नासा का यह यान डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट यानि DART अंतरिक्ष में मौजूद डाइमॉरफस उल्का पिंड से करीब 1.1 करोड़ किलोमीटर दूरी पर टकराया है। इस टक्कर का मकसद उल्का को नष्ट करना नहीं बल्कि यह जानना था कि टक्कर से उल्का पिंड की ऑर्बिट यानि उसकी कक्षा में कोई परिवर्तन होता है या नहीं।

साधारण भाषा में उल्का का रास्ता बदलना ही इसका मकसद था। अब यह रास्ता बदला है या नहीं, इसका अध्ययन अगले कुछ महीनों तक नासा करता रहेगा, जो कि मिशन 2 होगा। नासा के अनुसार इस टक्कर से उल्का पर एक बड़ा गड्ढा बना होगा, करीब 10 लाख किलो पत्थर और धूल स्पेस में बिखरी होगी। यदि उल्का की दिशा बदली होगी तो यह मिशन कामयाब माना जाएगा और भविष्य में अंतरिक्ष से आने वाले खतरों को दूर किया जा सकेगा।

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Jupiter closest to Earth tonight copy

आज की रात है खास, फिर आएगी 107 वर्ष बाद मिलेगा मौका

यदि आप ज्योतिष में विश्वास करते हैं और खगोलिय घटनाएं देखने में रूचि रखते हैं तो यह खबर जरूर पढ़ें। आज यानि 26 सितंबर 2022 सोमवार की रात आपके लिए खास है। आज बृहस्पति ग्रह यानि गुरू (Jupiter) पृथ्वी (Earth) के सबसे करीब आ रहा है। यह खगोलीय घटना 59 वर्षों बाद हो रही है। आज की रात पृथ्वी और ब्रहस्पति ग्रह की दूरी सबसे कम होगी। नासा के अनुसार आज की रात दोनों ग्रह के बीच की दूरी कम होकर 59.1 करोड़ किलोमीटर हो जाएगी। भविष्य में यह रात 2129 में होगी, यानि आज से 107 वर्ष बाद। आम तौर पर पृथ्वी और ब्रहस्पति की दूरी 96.5 करोड़ किलोमीटर है। आज यह ग्रह पृथ्वी से काफी चमकीला नजर आने वाला है। आपको बता दें कि ब्रहस्पति ग्रह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है और धरती से यह 11 गुना बड़ा है। ब्रहस्पति की कक्षा में 79 चंद्रमा हैं

मंगलवार सुबह साढ़े 5 बजे तक रहेगी यह घटना

जानकारी सामने आ रही है कि आज की रात ब्रहस्पति यानि जूपिटर बेहद चमकदार और बड़ा नजर आने वाला है। यह घटना सोमवार शाम 5 बजकर 29 मिनट पर शुरू हो चुकी है और मंगलवार तड़के 5 बजकर 31 मिनट तक देखी जाएगी और दुनिया के हर कोने से यह घटना देखी जा सकती है। टेलीस्कॉप की मदद से आप इस नजारे को और भी बढ़ा सकते हैं। यदि मौसम साफ रहा तो कहने ही क्या।

किस राशि के लिए लाभकारी

अब बात करते हैं ज्योतिष शास्त्र की। ज्योतिषियों के अनुसार आज की रात कन्या, धनु व मीन राशि के लिए यह खगोलीय घटना लाभदायक रहेगी। आपको किस्मत लाभ दे सकती है, आपके व्यापार में वृद्धि हो सकती है।

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ज्यादा मोबाइल चलाते हैं तो जरूर पढ़ें

मोबाइल फोन आजकल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल बिना अब जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हम कहीं भी हों, हमारे मोबाइल से हम अपना बिजनेस भी सकते हैं, दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से कनेक्ट भी रह सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मोबाइल का अत्याधिक प्रयोग हमारे रिश्तों को भी प्रभावित कर रहा है? दिन में चार घंटों से ज्यादा मोबाइल चलाने वाले अभिभावकों में अपने बच्चों के प्रति व्यवहार में बदलाव देखने को मिल रहा है। एक रिसर्च में यह दावा किया गया है कि ज्यादा मोबाइल चलाने वाले लोग बच्चों के प्रति चिड़चिड़े हो जाते हैं और बेमतलब उन्हें डांटते-डपटते हैं, इससे बच्चों के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रिसर्च करने वालों ने 549 ऐसे अभिभावकों पर रिसर्च की, जिनके 5 से 18 वर्ष तक के दो-दो बच्चे थे। इसमें पाया गया कि यदि लोग खाली बैठे मोबाइल चलाते हैं तो बच्चों को वे जरूर झिड़कते और डांटअते हैं। उन पर ज्यादा चिल्लाते हैं। इनमें 75 प्रतिशत लोग डिप्रेशन के शिकार भी पाए गए। भले ही यह सुनने में यह बात ज्यादा खतरनाक न लग रही हो, लेकिन भविष्य के लिए खतरनाक है। बच्चों को इस प्रकार बेमतलब डांटने से परिजनों के प्रति उनके मन में गलत छवि बन रही है, जो ठीक नहीं है। जब आपस में बातचीत कम हो जाए तो पैरेंटिंग की आदतें खराब होने लगती हैं।

वहीं इस रिसर्च में यह भी सामने आया कि दिन में मात्र एक-दो घंटे या सीमित समय में रुक-रुक कर मोबाइल चलाने वालों का व्यवहार उनके बच्चों के प्रति ठीक रहा। मोबाइल पर अपना काम जरूर कीजिए, लेकिन परिवार का समय उनको जरूर दीजिए।

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