घर में कोई मेहमान आए और समोसे न मंगवाए जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। देशभर में समोसा हमारी मेहमान नवाजी की थाली की शान होता है। हर छोटी मोटी पार्टी में भी कोल्ड ड्रिंक्स के साथ समोसा परोसा जाता है, क्योंकि समोसा पार्टी बजट में भी हो जाती है। कभी बरसात आ जाए तो हमारे जेहन में पकौड़े, जलेबी या फिर समोसे ही आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि समोसे को लेकर जो दावा किया जाता है, उसके अनुसार समोसा भारतीय खाने की परंपरा में शामिल ही नहीं था। ईरान से यह समोसा भारत आया। 5 सितंबर को समोसा डे है, क्योंकि 2013 में ब्रिटिश काऊंसिल ने समोसे को दुनिया का पसंदीदा स्नैक्स मानकर 5 सितंबर को समोसा दिवस मनाने की घोषणा की। आज जानते हैं चटपटे समोसे के इतिहास के बारे में…
हर दिन समोसे की लागत
भारत में चटपटे व मसालेदार समोसे बड़े चाव से खाया जाता है। फास्टफूड से बेहतर माने जाने वाले समोसे को लगभग 6 करोड़ लोग हर रोज खाते हैं। स्विगी के आंकड़ों पर गौर करें तो 1 मिनट में 115 ऑर्डर रोज मिलते हैं। 2021 में 50 लाख ऑर्डर समोसे हुए थे। यह मात्र एक कंपनी का ही डेटा है। अन्य कंपनियां का डेटा उपलब्ध नहीं है। और लोग खुद मार्केट में जाकर समोसा खरीदते या खाते हैं, वो अलग है। उनका आंकड़ा ऑनलाइन डिलवरी से कहीं ज्यादा हो सकता है। देशभर में समोसे का सालाना 42 लाख करोड़ रुपये का बिजनेस होता है, क्योंकि स्नैक्स के तौर पर समोसे की बहुत डिमांड है।
भारत के हर कोने में अलग-अलग नाम
समोसे का नाम दुनियाभर के देशों में अलग-अलग है, भारत में ही कई नामों से समोसा जाना जाता है। उत्तर भारतीय राज्यों में समोसा को समोसा ही बोला जाता है, जबकि तमिलनाडू में इसे सोमासी कहा जाता है, हैदराबाद में लुखमी, तो ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल व असम तथा आसपास राज्यों में इसे सिंघाड़ा कहा जाता है, क्योंकि यह सिंघाड़े जैसी तिकोनी शेप का होता है। दुनिया की बात करें तो बांग्लादेश में शिंगारा, इथोपिया, तजाकिस्तान में समबूसा, नेपाल में सिंगास, पाकिस्तान में समोसा, बर्मा में समूजा, इंडोनेशिया में समोसा, सोमालिया में समबूस, दक्षिण अफ्रीका में समूंसाज, पुर्तगाल में चालूवास कहते हैं।
वेज और नॉनवेज दोनों प्रकार के होते हैं समोसे
वैसे तो हमारे देश में वेज समोसे का ही प्रचलन है, लेकिन बहुत से इलाकों में नॉनवेज समोसे भी होते हैं, जिनमें आलू की जगह भुने हुए चिकन, मटन या अंडा आदि की फिलिंग की जाती है। अगर दुनिया की बात करें तो इरान, थाईलंैड, बरमा, बंगाल, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका, इथोपिया सहित कई देशों में समोसे खाए जाते हैं, लेकिन नाम अनेक होते हैं, जहां भारतवंशी नहीं हैं, वहां अधिकतर नॉनवेज समोसे ही खाए जाते हैं, जिनमें गोश्त भरा होता है। 13वीं-14वीं शताब्दी के आसपास या इससे पहले मिडिल ईस्ट के आक्रांताओं के साथ उनके रसोइयों के जरिये ईरान का सामसा यानि समोसा भारत पहुंचा था। अमीर खुसरो ने भी लिखा है कि शहंशाह समोसा बहुत चाव से खाते थे, जिसमें गोश्त और प्याज भरा होता था। इब्नबतूता ने भी ऐसे विदेशी आक्रमणकारी के बारे में लिखा है कि वे गोश्त, ड्राइ फ्रूट्स से भरे समोसे खाते थे। अकबर के समय ‘आइने अकबरीÓ में ईरानी समोसे को बनाने की रेसिपी का जिक्र है। लेकिन इसमें समोसे को सनबूशाह संबोाधित किया गया है।
समोसे का पहला जिक्र
9वीं शताब्दी में सबसे पहले एक फारसी कवि इशाक-अल-मौसिली की कविता में समोसे का जिक्र देखने को मिलता है। उन्होंने अपनी कविता में सनबुसज की खूब तारीफ की और बताया है कि इरान में इसे खूब खाया जाता था। समोसे को ही फारसी में सनबुसक कहा गया, जो कि फारसी भाषा के शब्द सनबोसाग से निकला है। मुगलों के समय भारत में जब समोसा आया तो इसमें आम लोगों ने आलू भरना शुरू कर दिया। अब आलू भी भारत का नहीं है। पुर्तगाली जब गोवा पहुंचे थे तो वे अपने साथ आलू लाए थे, जा कि दक्षिणी अमेरिका में उगाया जाता था। इसके बाद आलू समोसे का ही हो गया और अब आलू बिना समोसा की कल्पना नहीं की जा सकती, प्रयोग जरूर होते हैं, लेकिन आलू वाला समोसा ही ज्यादा खाया जाता है।
फास्टफूड का चलन, लेकिन समोसा बेहतर
आज भारत में भी फास्टफूड का चलन चल रहा है। पिज्जा, बर्गर, मोमोज आदि काफी शौक से खाए जाते हैं, लेकिन समोसा अपनी अलग ही डिमांड व पहचान रखता है। रिसर्च के अनुसार भी समोसा सभी फास्ट फूड से सेहत के लिए बेहतर है, क्योंकि इसमें सादे मसाले आदि ही यूज होते हैं, फास्ट फूड की तरह हानिकारक प्रिजर्वेटिव, एसिडिटी रेगुलेटर आदि यूज नहीं होते।