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दिल की बात: समय पर सीपीआर दें तो बचाई जा सकती है मरीज की जान

दिल के रोग सबसे अब बहुत आम होने लगे हैं और सबसे ज्यादा मौतें दिल का दौरा पडऩे से हो रही हैं। लेकिन हम अपने दिल के प्रति तो लापरवाह है हीं, लेकिन हम दिल के दौरा पडऩे पर भी मरीज के प्रति लापरवाही बरतते हैं। इस समय देश में 40 वर्ष के आसपास की आयु के लोग भी हृदयाघात की चपेट में आ रहे हैं। बड़े अस्पतालों में 10 प्रतिशत केस कम आयु के ही आ रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि दिल का दौरा पडऩे पर 10 लोगों से 4 लोगों की जान बचाई जा सकती है, यदि आसपास मौजूद इंसान उन्हें समय पर सीपीआर यानि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन दे दे। हाल ही में बेहद मशहूर बॉलीवुड सिंगर केके की एक कसंर्ट के दौरान हृदयाघात से जान चली गई। लेकिन शायद ही आप जानते हों कि उनकी जान बचाई जा सकती थी।

पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक का कहना है कि उनकी बाइ्रं तरफ की मेने कोरोनरी में 80 प्रतिशत ब्लॉकेज था, जबकि बाकी धमनियों में छोटे ब्लॉकेज थे। यदि उन्हें तुरंत सीपीआर दिया गया होता तो वे बच जाते। वहीं एक वरिष्ठ प्रोफेसर आदित्य कपूर का भी दावा है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भी बचाया जा सकता था, अगर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, शिलाँग के ऑडियंस में से किसी एक ने भी उन्हें सीपीआर दिया होता। हाल ही में चेन्नई एयरपोर्ट पर एक सीआईएसएफ जवान ने एक यात्री को दिल का दौरा पडऩे पर सीपीआर देकर उनकी जान बचा ली थी। आज विश्व हृदय दिवस है, तो जानिए सीपीआर के बारे में और दूसरों को भी जागरूक करें।

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आखिर क्या होता है सीपीआर

सीपीआर एक जिंदगी बचाने की तकनीक है। हार्ट अटैक आने पर इंसान की धड़कनें बंद होने लगती हैं। अस्पताल ले जाने तक वह दम तोड़ देता है। यदि इस स्थिति में मरीज को जमीन पर सीधा लेटाकर, उनके हाथ पांव सीधे रखकर कोई इंसान ऊपर से उनकी छाती पर दबाव दे तो मरीज की सांसें चलती रहती हैं। इसे सीपीआर कहते हैं। मुंंह से भी सीपीआर दी जा सकती है। बच्चों के मामले में हलका प्रेस करना होता है। सीपीआर देने वाले शख्स को भी अपने बाजू सीधे रखने होते हैं। केवल हृदयाघात ही नहीं बेहोशी के समय यदि कोई सांस न ले पाए, दुर्घटना के समय यदि किसी को सांस न आए या फिर पानी में डूबे इंसान को भी इसी प्रकार सीपीआर देकर बचाया जा सकता है। कम से कम उन्हें चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होनेे तक तो बचाया ही जा सकता है। यह भी ध्यान दें कि सीपीआर देते समय भी देर न करें, सीपीआर देते दौरान ही मरीज को अस्पताल ले जाने की व्यवस्थाएं भी होती रहनी चाहिए।

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सीपीआर से होगा क्या

सीपीआर देने से अचेत हो चुके व्यक्ति को सांस लेने में सहायता मिलती है। जिससे ब्रेन में खून का सर्कुलेशन चलता रहता है। सीपीआर देने से 10 मामलों में 4 की जान बचाई जा सकती है।

भारत में लोग अंजान

आपको जानकर हैरानी होगी कि लाइफ सेविंग इस तकनीक को जानने में भारत बेहद पिछड़ा हुआ है। यदि कोई हृदयाघात, दुर्घटना, बेहोशी या पानी डूबने की स्थिति में अचेत है तो आसपास के लोगों को या तो इस बारे पता ही नहीं, या फिर अगर पता है तो डर के मारे वह सीपीआर करता नहीं। होता यह है कि लोग मरीज के आसपास भीड़ बनाकर इकट्ठे हो जाते हैं और तब तक देर हो चुकी होती है। भारत में मात्र 2 फीसदी लोगों को ही सीपीआर देना आता है। जबकि अमेरिका में 20 प्रतिशत लोग सीपीआर देने में एक्सपर्ट हैं।

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