Haryana Agriculture news : कपास की बिजाई 15 अप्रैल से शुरू हो चुकी है। जिले में पिछले कुछ साल में गुलाबी सुंडी के प्रकोप के कारण कपास की फसल का रकबा लगातार घट रहा है। जिसके चलते धान का रकबा बढ़ रहा है, जिससे भूमिगत जल का भी दोहन बढ़ रहा है। सरकार और कृषि विभाग भूमिगत जल (Haryana Agriculture news) के दोहन को रोकने के लिए धान की बजाय कम सिंचाई में तैयार होने वाली फसलों पर जोर दे रहे हैं।
कपास की फसल में गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी के प्रकोप
कपास खरीफ की मुख्य फसल है। जिले में कुछ साल पहले तक 70 हजार हैक्टेयर से ज्यादा में कपास की फसल होती थी। लेकिन जुलाना, पिल्लूखेड़ा में भूमिगत जल स्तर ज्यादा आने की वजह से कपास की पैदावार बंद हो गई। एेसे में इन क्षेत्र के किसानों ने धान की खेती शुरू कर दी। वहीं कुछ साल पहले कपास की फसल में गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी के प्रकोप से जींद जिले के साथ-साथ अन्य जिलों में भी कपास का उत्पादन घट गया।
जिससे किसानों का कपास की खेती से मोह भंग होने लगा। जींद जिले (Haryana Agriculture news) में पिछले साल 27 हजार हैक्टेयर में ही कपास की फसल थी। वहीं साल 2022 में तो महज 16 हजार हैक्टेयर में ही कपास की फसल बची थी। उस समय गुलाबी सुंडी के कारण कपास की बिजाई कम हुई थी।
वहीं जुलाई में हुई भारी वर्षा के कारण हजारों एकड़ फसल खराब हो गई थी। धान की तुलना में कपास की फसल में पानी की लागत कम है। ऐसे में कृषि विभाग दोबारा कपास का रकबा बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। जहां सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम है, उन क्षेत्रों में कपास की बिजाई के लिए कृषि विभाग किसानों (Haryana Agriculture news) को जागरूक कर रहा है। वहीं गुलाबी सुंडी का प्रभाव कम से कम हो, इसके लिए खेतों में रखे कपास की फसल के अवशेष उठाने की किसानों को हिदायत दी है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल जो गुलाबी सुंडी कपास के टिंडे में रह गई थी, वो फसल अवशेष के अंदर जीवित हो सकती है। जिससे दोबारा कपास की फसल में जाकर नुकसान पहुंचाएगी। वहीं जिले में काटन व बिनौला मिल में बड़ी मात्रा में गुजरात से बिनौला आता है। जिसमें भी गुलाबी सुंडी हो सकती है। इसलिए कृषि अधिकारी मिल का निरीक्षण कर संचालकों को कपास व बिनौले को ढक कर रखने के निर्देश दे रहे हैं।
तीन साल पहले पालवां से गुलाबी सुंडी का हुआ फैलाव शुरू
कृषि विभाग के अनुसार जिले में गुलाबी सुंडी की शुरुआत पालवां गांव (Haryana Agriculture news) से हुई। पालवां गांव में काटन व बिनौला मिल हैं। जहां गुजरात से बिनौला आता है। ऐसा माना जाता है कि इसी बिनौले में गुजरात से गुलाबी सुंडी पालवां गांव में पहुंची। जहां बाकी क्षेत्र में इसका फैलाव हो गया।
गुलाबी सुंडी टिंडे के अंदर बिनौले का रस चूस लेती है। महंगे से महंगी और तेज प्रभाव वाली दवाइयों का स्प्रे करने के बावजूद गुलाबी सुंडी नियंत्रण में नहीं आती है। ऐसे में इसके शुरुआत में ही फैलाव को रोकना ही बड़ा बचाव है।
प्रमाणित बीज खरीदें और पक्का बिल लें किसान
जिला कृषि उप निदेशक डा. गिरिश नागपाल ने बताया कि गुलाबी सुंडी के प्रकोप की वजह से पिछले कुछ साल में जिले में कपास का रकबा घटा है। दोबारा कपास का रकबा बढ़ाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। गुलाबी सुंडी के फैलाव को कैसे रोका जा सकता है, इसके बारे में किसानों को बताया जा रहा है।
खेत में पड़े कपास के पिछले साल के फसल अवशेष को हटवाया जा रहा है। इस बार कपास का रकबा बढ़ने की उम्मीद है। किसान किसी दुकानदार या डीलर (Haryana Agriculture news) के बहकावे में आकर महंगे बीज ना खरीदें। प्रमाणित बीज खरीदें और पक्का बिल लें। बिजाई से पहले खेत को अच्छे से तैयार करें।