गुलाबी सुंडी व अन्य रोगों को लेकर नरमा उत्पादक किसानों को हकृवि की एडवाइजरी

फतेहाबाद। चौधरी चरण ङ्क्षसह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा नरमा कपास उत्पादक किसानों के लिए एक अक्टूबर से 15 अक्टूबर की अवधि के लिए जरूरी दिशा निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों में चुगाई, रोग प्रबंधन और कीट प्रबंधन पर विस्तार से जानकारी दी गई है। साथ ही सलाह दी है कि हकृवि के मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर जारी किए जाने वाले मौसम पूर्वानुमान को ध्यान में रखकर किसान कीटनाशक व फफूंदनाशकों का प्रयोग करेंं।

कीट प्रबंधन कैसे करें

निर्देशों में कहा गया है कि अक्टूबर के महीने में गुलाबी सुंडी का प्रकोप नरमा की फसल में बढ़ जाता हैें। विशेषकर देर से लगायी गई नरमा फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप ज्यादा होता हैं। पिछले पखवाड़े में किए गए सर्वे में नरमा फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप ज्यादा पाया गया। अत: इस पखवाड़े में अपनी फसल में गुलाबी सुंडी के प्रकोप की निगरानी जरूर करें। इसके लिए सप्ताह में दो बार नरमा फसल मे 100 फूलों का निरक्षण करें।

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सप्ताह में एक बार अपनी फसल से 20-25 हरे टिंडे (1 टिंडा एक पौधे से, जो 12-15 दिनों पुराना एवं बड़े आकार का) खेत में अलग अलग जगह से तोड़कर उनको फाड़कर निरीक्षण करें। इसमें से यदि 5-10 फूल गुलाबी सुंडी से ग्रसित मिलते हैं या 20 टिन्डों को फाड़कर देेखने पर 1-2 टिन्डों में जीवित गुलाबी सुंडी मिलती हैं तो कीटनाशक के छिड़काव की आवश्यकता हैं। इसके अलावा गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए 2 फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ लगाएं तथा इनमें फंसने वाले गुलाबी सुंडी के पतंगों को 3 दिनों के अंतराल पर गिनती करें।

मध्य अगस्त से अक्टूबर तक यदि इनमें कुल 24 पतंगे प्रति ट्रैप तीन दिन में आते हैं तो कीटनाशक के छिड़काव की आवश्यकता हैं। सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह में हुई बारिश के बाद गुलाबी सुंडी के वयस्क की सँख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है। नरमा की पछेती फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप फलीय भागों पर 5-10 प्रतिशत होने पर एक छिड़काव 80 से 100 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. अथवा 160 से 200 मिलीलीटर डेकामेथरीन 2.8 ई.सी. अथवा 125 मिलीलीटर फेनवलरेट 20 ई.सीे क0 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से करें।

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रोग प्रबंधन कैसे करें

कपास के तिड़क रोग से टिंडे ठीक तरह से नहीं खुलते। यह रोग हरियाणा के पश्चिमी इलाकों में कभी कभी लगने लगता है। रेतीली जमीनों में नाइट्रोजन की कमी के कारण कपास के पत्तों का रंग लाल पड जाता है एवम बढ़वार रुक जाती है। फूल तथा टिंडे लगने के समय आवश्यकतानुसार खाद डालने व पानी देने से जमीन के तापमान में कमी आती है और इस रोग की रोकथाम में आसानी होती है। टिंडा गलन रोग पर नियंत्रण के लिए सुंडी नियंत्रण वाली सिफारिश की गयी दवाई के साथ कॉपर ऑक्सिक्लोराइड या बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें।

पैराविल्ट के लिए किसान भाई लक्षण दिखाई देते ही 24 से 48 घंटों के अंदर 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड 200 लीटर पानी में घोल बनाकर 24 से 48 घंटे में खेत में छिड़काव करें परंतु पौधे सूख जाने पर दवा का असर नहीं होगा। जीवाणु अंगमारी रोग के लिए किसान भाई 6 से 8 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लीन और 600 से 800 ग्राम
कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 से 20 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिड़काव करें। जड़ गलन बीमारी से सूखे हुए पौधों को खेत में से उखाड़ कर जमीन में दबा दें, ताकि बीमारियों को आगे बढऩे से रोका जा सके।

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इस रोग से प्रभावित पौधों के आसपास स्वस्थ पौधों में 1 मीटर तक कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 100 – 200 मिलीलीटर प्रति पौधा जड़ों में डालें। जड़ गलन रोग के लिए दवाई डालते समय किसान भाई पीठ वाले स्प्रे पंप का प्रयोग करते समय मोटे फव्वारे का प्रयोग करके जड़ों के पास इस फफूंदनाशक घोल को डालें।

 

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