नई दिल्ली। 70 साल बाद भारत में आए चीते, जानिए कैसे हुए लुप्त .. आखिरकार पूरे 70 साल बाद देश में चीतों का आगमन हुआ है। 1948 में देश के आखिरी चीते का शिकार कर दिया गया था। तब से देश से चीते लुप्त हो गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस पर आज सुबह 7 बजकर 55 मिनट पर नामिबिया से स्पेशल विमान पर 8 चीतों को भारत लाया गया है। इनमें 2 सगे भाई हैं। चीतों में तीन फीमेल और 5 मेल चीते हैं। 24 लोगों की टीम चीते लेकर ग्वालियर एयरबेस पर उतरी।
यहां पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री शिवराज चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया मौजूद रहे। जहां से चिनूक हैलीकॉप्टर के जरिये उन्हें कूनो नेशनल पार्क लाया गया। पीएम नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। उन्होंने खुद बॉक्स खोलकर तीन चीतों को बाड़े में छोड़ा। मोदी ने यहां बच्चों के साथ अपना जन्म दिवस मनाया और और चीता मित्र दल सदस्यों से बातचीत की। इन चीतों को लकड़ी से बने एक खास तरह के पिंजरे में लाया गया, जिसमें छेदों से चीते हवा ले सकते हैं और बाहर देख भी सकते हैं। चीतों के साथ नामिबिया से वेटरनरी डॉक्टर भी आए।
यहां आने पर रूटीन चेकअप किया। चीतों की उम्र ढाई से 5 साल के बीच है और इनकी औसत उम्र 12 वर्ष होती है। बड़े स्तर के मांसाहारी वण्य प्राणियों की यह पहली तरह की शिफ्टिंग है। इन चीतों को लेकर भारत और नामिबिया सरकार में 20 जुलाई 2022 को एग्रीमेंट हुआ था। सरकार का उद्देश्य भारत में चीतों का पुनव्र्यवस्थापन है।
पीएम मोदी ने चीता मित्रों से कहा- कूनो में चीता फिर से दौड़ेगा तो यहां बायोडायवर्सिटी बढ़ेगी। यहां विकास की संभावनाएं जन्म लेंगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पीएम ने लोगों से अपील की कि अभी धैर्य रखें, चीतों को देखने नहीं आएं। ये चीते मेहमान बनकर आए हैं। इस क्षेत्र से अनजान हैं। कूनो को ये अपना घर बना पाएं, इसके लिए इनको सहयोग देना है। कूनो में प्रधानमंत्री के लिए 10 फीट ऊंचा प्लेटफॉर्मनुमा मंच बनाया गया था। इसी मंच के नीचे पिंजरे में चीते थे।
पीएम ने लीवर के जरिए बॉक्स को खोला। चीते बाहर आते ही अनजान जगह में सहमे हुए दिखे। सहमते कदमों के साथ इधर-उधर नजरें घुमाईं और चहलकदमी करने लगे। लंबे सफर की थकान चीतों पर साफ दिख रही थी। चीतों के बाहर आते ही पीएम मोदी ने ताली बजाकर उनका स्वागत किया। मोदी ने कुछ फोटो भी क्लिक किए।
चीते की खासियत
चीते शेर या बाघ की तरह दहाड़ नहीं लगा सकते, लेकिन गुर्राते हैं औंर बिल्लियों की तरह भी आवाज निकालते हैं। चीता वैसे 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है, लेकिन रिकॉर्ड की गई रफ्तार के अनुसार चीते मात्र 9 सेकेंडर में 96 किलोमीटर की अधिकतम स्पीड पकड़ लेते हैं, लेकिन वे अधिकतम 1 मिनट तक ही भाग सकते हैं और 450 मीटर दूर तक ही वे दौड़ लगा सकते हैं।
3 सेकेंड में ही वे अपनी स्पीड बहुत 23 किलोमीटर प्रति घंटा तक कम करने में सक्षम हैं। उनकी लंबी टांगे, लंबी पूंछ और बड़ी रीढ़ की हड्डी के चलते वे तेज दौड़ते हैं। लचीली रीढ़ के चलते दौड़ते समय उनके पिछले पैर उनके आगे के पैर से भी आगे निकल सकते हैं। चीता 23 फीट यानि 7 मीटर तक की छलांग लगाकर दौड़ता है।
वे अपने शिकार को एक मिनट में पकड़ लें, इसके लिए वे बेहद करीब जाकर उनका शिकार करते हैं क्योंकि एक मिनट में वे थककर रुकना शुरू कर देते हैं और पीछा छोड़ देते हैं। चीता पतला और लंबा ज्यादा होता है, उसका वजन भी अन्य मांसभक्षी बिल्ली प्रजाती के जानवरों से कम होता है, इसलिए वह बड़े जानवरों का शिकार नहीं कर सकता। चीते की आंखें आगे की तरफ सीधी होती हैं, जिससे वे कई किलोमीटर तक देख सकते हैं और आंखों में इमेज स्टेबलाइजेशन सिस्टम होने के कारण भागते समय भी उनकी आंखें अपने निशाने पर केंद्रित रहती हैं।
भारत में अंतिम चीते की मौत 1948 में हुई
देश में अंतिम चीता 1948 में मारा गया था। अंतिम चीते का शिकार छत्तीसगढ़ में महाराजा द्वारा किया गया था। 1952 में सरकार ने घोषणा कर दी थी कि देश में कोई भी चीता अब नहीं है। दुनिया की बात करें तो कुल 7 हजार चीते दुनिया में हैं। इनमें से भी 4500 चीते साऊथ अफ्रीका में हैं।
चीतों के 95 प्रतिशत शावक व्यस्क नहीं हो पाते
चीतों के खात्मे के पीछे का कारण यह है कि मादा चीता पर ही उसके शावक पालने की जिम्मेदारी होती है। मिलन के बाद नर-मादा चीते अलग हो जाते हैं और औसतन 9 शावक वह अकेेले पालती है, इस दौरान वह शिकार भी करती है, शावकों को शिकारी जानवरों से भी बचाती है। शिकार पर जाने के दौरान उसके शावकों को अन्य शिकारी जानवर जैसे शेर, बबून, लकड़बघा या शिकारी पक्षी अपना शिकार बना डालते हैं। 95 प्रतिशत शावक बड़े हो ही नहीं पाते।